|| गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF ||
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, लेकिन बर्तन पके नहीं। बार-बार ऐसा होने से वह बहुत दुखी हो गया। इस समस्या का समाधान जानने के लिए वह एक पुजारी के पास गया।
पुजारी ने कुम्हार की समस्या सुनकर कहा कि उसे अपनी तपस्या के बल पर एक बच्चे की बलि देनी होगी, तभी बर्तन पकेंगे। कुम्हार अपनी पत्नी के साथ इस बात को लेकर बहुत परेशान था। तब उसकी पत्नी ने कहा कि हमारा एक पुत्र है, जिसे हम अपनी तपस्या के लिए दे सकते हैं। दोनों ने मिलकर तय किया कि पुत्र की बलि दी जाएगी।
जैसे ही वे अपने पुत्र को बलि देने के लिए लेकर जा रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें नारद मुनि मिले। नारद मुनि ने उनसे पूछा कि वे क्या कर रहे हैं। कुम्हार ने अपनी सारी समस्या उन्हें बताई। नारद मुनि ने उन्हें गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत की महिमा बताई और कहा कि पुत्र की बलि देने के बजाय यह व्रत करना चाहिए।
नारद मुनि ने उन्हें व्रत की विधि समझाते हुए कहा कि संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करें और उन्हें मोदक, दूर्वा, लड्डू आदि अर्पित करें। रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और गणेश जी की आरती करें। यह व्रत करने से आपकी सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी।
कुम्हार और उसकी पत्नी ने नारद मुनि के कहे अनुसार पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका आंवा सही से पक गया और उनके सारे बर्तन अच्छे बन गए। धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर गई और उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति भी हुई।
तभी से यह मान्यता है कि जो कोई भी गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विघ्न दूर होते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
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