भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के आकाश में ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ (Shrimad Bhagavad Gita) एक ऐसे ध्रुव तारे के समान है, जो अनादि काल से मानव जाति को सही दिशा दिखाता रहा है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला (Art of living), प्रबंधन (Management) और मनोविज्ञान (Psychology) का एक अद्भुत संगम है।
हर वर्ष, मार्गशीर्ष (Margashirsha) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को, यह पावन ग्रंथ हमें भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के दिव्य मुख से मिला था। इसी दिन को हम अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ गीता जयन्ती (Gita Jayanti) के रूप में मनाते हैं। दुनिया में यह एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है, जो स्वयं इसके असाधारण महत्व को दर्शाता है।
क्या है गीता जयन्ती? (What is Gita Jayanti?)
गीता जयन्ती वह पावन तिथि है, जब आज से लगभग 5160 वर्ष पहले, महाभारत के युद्ध के मैदान – कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) में, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम मित्र और शिष्य अर्जुन को ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ का उपदेश दिया था।
यह क्षण तब आया, जब अपने सामने गुरुजनों, भाई-बंधुओं और रिश्तेदारों को देखकर अर्जुन मोहग्रस्त (Bewildered) हो गए और उन्होंने युद्ध करने से मना कर दिया। मानव मन की इस सबसे बड़ी दुविधा – ‘कर्तव्य और मोह’ (Duty and attachment) के बीच संतुलन बनाने के लिए ही, योगीराज श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्म, धर्म, ज्ञान और भक्ति का सार समझाया। यही 700 श्लोकों का दिव्य संवाद ‘भगवद् गीता’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
चूंकि यह एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली होती है, इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है।
क्यों मनाई जाती है गीता जयन्ती? (Why is Gita Jayanti Celebrated?)
गीता जयन्ती मनाने के पीछे कई अद्वितीय और गहन कारण हैं, जो इसे अन्य जयन्तियों से अलग बनाते हैं:
- ईश्वरीय मुख से उद्भव – गीता किसी ऋषि या मुनि द्वारा लिखित नहीं है, बल्कि यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकला ‘परम ज्ञान’ है। यह ज्ञान का शाश्वत स्रोत (Eternal source of knowledge) है, इसलिए इसके ‘जन्म’ के दिन को एक महापर्व के रूप में मनाया जाता है।
- मानव जाति के लिए मार्गदर्शन – गीता का उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि यह सम्पूर्ण मानव समाज के लिए जीवन की चुनौतियों से निपटने का ‘गाइडबुक’ (Guidebook) है। इसकी जयंती मनाकर हम उस सार्वभौमिक सत्य (Universal Truth) का सम्मान करते हैं, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
- अमर आत्मा की घोषणा – गीता जयन्ती हमें आत्मा की अमरता (Immortality of the soul) और संसार की क्षणभंगुरता (Transience of the world) का बोध कराती है। यह सिखाती है कि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अविनाशी है, जिससे मृत्यु का भय समाप्त होता है – यह अभय विद्या है।
- कर्म की प्रेरणा – यह दिन हमें निष्काम कर्मयोग (Nishkam Karma Yoga) के सिद्धांत को याद दिलाता है: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (आपका अधिकार केवल कर्म करने पर है, उसके फल पर कभी नहीं)। यह प्रेरणा हमें वर्तमान में पूरी क्षमता के साथ जीने के लिए प्रेरित करती है।
गीता का महत्व ज्ञान का महासागर (Significance of Gita: The Ocean of Knowledge)
भगवद् गीता केवल धर्म तक सीमित नहीं है। इसके 18 अध्यायों में जीवन के हर पहलू का समाधान छिपा है। इसे ‘उपनिषदों का सार’ (Essence of the Upanishads) कहा जाता है, जो इसे वेदों के समान पूजनीय बनाता है।
प्रबंधन और नेतृत्व का सूत्र (Formula for Management and Leadership)
- गीता सिखाती है कि सफल होने के लिए फल की चिंता छोड़कर केवल अपने कर्तव्य (Duty) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह आधुनिक प्रबंधन (Modern Management) का मूल मंत्र है।
- सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समान भाव रखना ही ‘समत्व योग’ कहलाता है। यह नेतृत्व (Leadership) के लिए अत्यंत आवश्यक है, ताकि कठिन परिस्थितियों में भी सही निर्णय लिया जा सके।
मानसिक स्वास्थ्य और तनाव मुक्ति (Mental Health and Stress Relief)
- श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृतिभ्रम, और स्मृतिभ्रम से बुद्धि का नाश होता है। गीता का ज्ञान हमें अपने आवेगों (Impulses) को नियंत्रित करने का मार्ग दिखाता है।
- “जो हुआ, वह अच्छा हुआ। जो हो रहा है, वह भी अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।” यह अनमोल वचन हमें भविष्य की व्यर्थ चिंता (Needless Worry) से मुक्त करता है और वर्तमान में जीने की शक्ति देता है।
संबंधों की समझ (Understanding Relationships)
गीता हमें यह बोध कराती है कि इस संसार में सभी जीव एक ही परमात्मा के अंश हैं। इस साम्य विद्या के ज्ञान से हम अपने संबंधों को मोह के बंधन से मुक्त कर, वास्तविक प्रेम और कर्तव्य (Real Love and Duty) के आधार पर निभा पाते हैं।
गीता जयन्ती कैसे मनाएँ? (How to Celebrate Gita Jayanti?)
गीता जयन्ती का पर्व कर्मकांड से अधिक ज्ञान की अनुभूति का पर्व है।
- गीता पाठ और श्रवण – इस दिन पूरे ग्रंथ का पाठ करना या किसी ज्ञानी वक्ता से इसके उपदेशों को सुनना सबसे उत्तम माना जाता है।
- निष्काम सेवा – एकादशी के दिन व्रत रखने के साथ-साथ, किसी ज़रूरतमंद की मदद करके ‘निष्काम कर्म’ का अभ्यास करना चाहिए।
- आत्मचिंतन (Self-Introspection) – गीता के किसी एक श्लोक को चुनकर, उसके अर्थ पर गहरा चिंतन करें और उसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें।
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