गोवर्धन महाराज को गिरिराज के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान कृष्ण के सबसे प्रिय भक्तों में से एक हैं। गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। यह पर्वत वृंदावन में स्थित है और लाखों भक्त प्रतिवर्ष इसकी परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन पर्वत की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इससे भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह पर्वत न केवल एक भूगोलिक स्थान है, बल्कि यह भक्ति, विश्वास और आस्था का प्रतीक भी है।
|| गोवर्धन महाराज आरती (Govardhan Aarti PDF) ||
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
चकलेश्वर है विश्राम।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,
तेरी झाँकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण,
करो भक्त का बेड़ा पार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
|| गोवर्धन पूजा की विधि ||
- सबसे पहले गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बनाएं।
- इसके बाद पर्वत को फूलों, अक्षत और रोली से सजाएं।
- गोवर्धन महाराज के सामने गाय, बछड़े, ग्वाल-बालों और पेड़-पौधों का चित्र बनाएं।
- धूप, दीप, रोली, अक्षत, जल, फल, मिठाई और पकवान से गोवर्धन महाराज की पूजा करें।
- अंत में गोवर्धन महाराज की आरती गाएं और सभी में प्रसाद बाटें।
|| गोवर्धन पूजा के लाभ ||
- गोवर्धन पूजा से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
- इस पूजा से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- यह पूजा करने से सभी कष्टों और दुखों का निवारण होता है।
- गोवर्धन महाराज की पूजा से धन-धान्य और अन्न-भंडार में कभी कमी नहीं होती।
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