Misc

जाने माँ कामाख्या शक्ति पीठ का रहस्य, यहां गिरी थी मां सती की योनि

MiscHindu Gyan (हिन्दू ज्ञान)हिन्दी
Share This

Join HinduNidhi WhatsApp Channel

Stay updated with the latest Hindu Text, updates, and exclusive content. Join our WhatsApp channel now!

Join Now

कहा जाता है कि जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध है। भारत में ऐसे तमाम शक्तिपीठ मौजूद हैं, जहां माता सती की पूजा, कामाख्या देवी आरती होती है। इन शक्तिपीठों के दर्शन की विशेष मान्यता है, दूर-दूर से लोग यहां आकर माता का आशीष प्राप्त करते हैं।

इसके अलावा, यह मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ भी माना जाता है। असम के गुवाहाटी से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या मंदिर में माता की योनि का भाग गिरा था। इसलिए हर साल यहां भव्य अंबुबाची मेला का आयोजन किया जाता है।

इस मेले में शामिल होने के लिए तमाम श्रद्धालु, साधु-संत और तांत्रिक दूर-दूर से आते हैं। ये मेला उस समय लगता है जब माता कामाख्या रजस्वला होती हैं। ऐसे में कुछ महीनों बाद मंदिर के पट खुलने को तैयार होते हैं। इस बीच, अगर आप असम जाने का प्लान बना रहे हैं, तो माता कामाख्या के दर्शन जरूर कीजिएगा।

देवी सती: योनि पूजा का रहस्य

कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के साथ मां सती को काट दिया था। उसी काटने से देवी सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था। हिन्दू धर्म और पुराणों के अनुसार, जहां-जहां सती के अंग या धारण किए हुए वस्त्र और आभूषण गिरे थे, वहां पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। इस तीर्थस्थल पर देवी सती की पूजा योनि के रूप में की जाती है, जबकि यहां पर कोई देवी की मूर्ति नहीं है। यहां पर सिर्फ एक योनि के आकार का शिलाखंड है, जिस पर लाल रंग की धारा गिराई जाती है।

अनोखा प्रसाद: इस मंदिर में क्या मिलता है अद्भुत भोग

यहाँ तीन दिनों तक मासिक धर्म के कारण एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रखा जाता है, और तीन दिनों बाद जब दरबार खुलता है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है। इसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। मां के मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है। सभी शक्ति पीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम माना गया है। इस कपड़े को ‘अम्बुवाची कपड़ा’ कहा जाता है, और इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

बलिदान: जानवरों की बलि की परंपरा का रहस्य

यहाँ जानवरों की बलि दी जाती है। यह एक हिंदू मंदिर है, जहाँ आज भी जानवरों की बलि दी जाती है। इस मंदिर के पास एक कुंड है, जहाँ पांच दिन तक दुर्गा माता की पूजा भी होती है और यहाँ दिन-रात भक्त आते हैं। इस मंदिर में कामाख्या माता को बकरे, कछुए और भैंसों की बलि चढ़ाई जाती है, और वहीं कुछ लोग कबूतर, मछली और गन्ना भी माता कामाख्या देवी मंदिर में चढ़ाते हैं। प्राचीन काल में यहाँ मानव शिशुओं की भी बलि चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यह प्रथा बदल गई है। अब यहाँ जानवरों के कान की स्किन का कुछ हिस्सा बलि चिह्न मानकर चढ़ा दिया जाता है, और फिर उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है।

कामाख्या: तंत्र और मंत्रों का रहस्यमय द्वार

कामाख्या शक्तिपीठ के लिए जाना जाता है तंत्र-मंत्र साधना के लिए। माता कामाख्या का पावन धाम यहाँ है, जहाँ सभी कामनाएँ पूरी होती हैं। इसीलिए इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है। यहां हर रोज कामाख्या देवी चालीसा का पाठ होता है। यहाँ पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है, और इस मंदिर में तंत्र-मंत्र से संबंधित चीजें मिलती हैं। अघोरी और तंत्र-मंत्र करने वाले लोग यहाँ से इन चीजों को लेकर जाते हैं।

जानिए कामाख्या मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर का इतिहास कामाख्या मंदिर भारत में सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, और सदियों से इसका इतिहास है। इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था। परन्तु हुसैन शाह ने आक्रमण कर मंदिर को नष्ट कर दिया था। 16वीं सदी में यह मंदिर नष्ट हो गया था, फिर बाद में 17वीं सदी में इसे पुनः निर्माण किया गया था, इस बार बिहार के राजा नारायण नरसिंह ने।

मंदिर में कुंड

मंदिर में एक कुंड है। मंदिर में माता की कोई तस्वीर नहीं है, बल्कि एक कुंड है जो फूलों से ढाका होता है और हमेशा जल निकलता रहता है। तंत्र मंत्र की साधना करने वाले तांत्रिक हर साल अंबुवाची मेले में इस मंदिर में आते हैं।

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App
Join WhatsApp Channel Download App