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Shri Ganesh

कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha

Shri GaneshVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा ||

पार्वती जी ने पूछा, “हे लम्बोदर! जो सबसे भाग्यशाली हैं, और भाषण करने में श्रेष्ठ हैं! मुझे बताओ कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन किस नाम वाले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए और किस विधि से?”

श्रीकृष्ण जी ने कहा, “गणेश जी ने अपनी माता के प्रश्न का जवाब दिया कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को ‘संकटा’ कहा जाता है। उस दिन ‘पिंग’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा सही विधि से होनी चाहिए, और उस दिन केवल एक बार भोजन करना चाहिए। व्रत और पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर, फिर खुद मौन रहकर भोजन करना चाहिए।

अब मैं इस व्रत का महत्व बता रहा हूँ, इसे ध्यान से सुनिए। कार्तिक कृष्ण संकटा चतुर्थी के दिन घी और उड़द से हवन करना चाहिए। इससे मनुष्य को सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। श्रीकृष्ण जी ने आगे कहा कि एक बार वृत्रासुर नाम के दैत्य ने तीनों लोकों को जीतकर सभी देवताओं को हरा दिया और उन्हें उनके लोकों से भगा दिया। सभी देवता इधर-उधर भागने लगे।

तब सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने कहा कि वृत्रासुर समुद्री द्वीप में रहकर निडर और ताकतवर बन गया है और उसने ब्रह्मा जी से वरदान लिया है कि वह किसी देवता के हाथों नहीं मरेगा। इसलिए देवताओं को सुझाव दिया कि वे अगस्त्य मुनि को प्रसन्न करें ताकि वे समुद्र को पी जाएं, जिससे दैत्य अपने ठिकाने से हट जाएंगे और देवता स्वर्ग में शांति से रह सकेंगे।

यह सुनकर सभी देवता अगस्त्य मुनि के आश्रम में गए और उनकी स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। मुनि ने देवताओं से कहा, “डरने की कोई बात नहीं है, आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी।” मुनि की इस बात से देवता अपने-अपने लोकों में वापस चले गए। लेकिन मुनि को चिंता हुई कि इतना बड़ा समुद्र कैसे पिएंगे?

तब मुनि ने गणेश जी का स्मरण कर संकटा चतुर्थी का व्रत विधिपूर्वक किया। तीन महीने के व्रत के बाद गणेश जी प्रसन्न हुए और मुनि ने आसानी से समुद्र पीकर उसे सूखा दिया।

इस व्रत के प्रभाव से अर्जुन ने भी निवात-कवच जैसे सभी दैत्यों को पराजित कर दिया। गणेश जी की इस कृपा से माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुईं और गर्व महसूस किया कि उनका पुत्र विश्ववंद्य और सब सिद्धियों का दाता है।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, “हे महाराज! आप भी यह चतुर्थी का व्रत करें। इससे आप जल्दी ही अपने सभी शत्रुओं को जीतकर अपना राज्य पा लेंगे।”

श्रीकृष्ण के निर्देश पर युधिष्ठिर ने गणेश जी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपने शत्रुओं पर विजय पाकर अखंड राज्य प्राप्त किया। केवल इस कथा को सुनने से ही हजारों अश्वमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है और पुत्र-पौत्र की वृद्धि भी होती है।

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