|| कुंभ संक्रांति की पूजा विधि ||
कुंभ संक्रांति एक पवित्र और शुभ अवसर है, जो सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व होता है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- कुंभ संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करें।
- स्नान के बाद पानी में गंगा जल और तिल मिलाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
- इसके बाद मंदिर में दीप जलाएं और भगवान सूर्य के 108 नामों का जाप करें या सूर्य चालीसा का पाठ करें।
- पूजा संपन्न होने के बाद किसी गरीब या पंडित को दान दें।
- दान में खाद्य सामग्री जैसे चावल, दाल, आलू के साथ अपनी क्षमता अनुसार वस्त्र भी दान करें।
|| कुंभ संक्रांति कथा ||
प्राचीन काल में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें 14 रत्न उत्पन्न हुए और अंत में अमृत से भरा घड़ा निकला। अमृत के बंटवारे को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ।
इस संघर्ष के दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। जब सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है। यहां स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है।
|| संक्रांति की कथा ||
प्राचीनकाल में हरिदास नामक एक धार्मिक और दयालु ब्राह्मण था। उसकी पत्नी गुणवती भी धर्मपरायण थीं। उन्होंने सभी देवी-देवताओं की पूजा की, लेकिन धर्मराज की पूजा या व्रत कभी नहीं किया।
मृत्यु के बाद चित्रगुप्त ने उनके पापों का लेखा-जोखा पढ़ते समय बताया कि उन्होंने धर्मराज के नाम से कभी व्रत, पूजा या दान नहीं किया। यह सुनकर गुणवती ने अपनी गलती स्वीकार की और इसका समाधान पूछा।
धर्मराज ने कहा, मकर संक्रांति के दिन से मेरी पूजा प्रारंभ करके पूरे वर्ष मेरी कथा सुनो और पूजा करो। पूजा के बाद अपनी क्षमता अनुसार दान करो। सालभर बाद उद्यापन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मेरी पूजा के साथ चित्रगुप्त जी की भी पूजा करनी चाहिए। उन्हें सफेद और काले तिल के लड्डुओं का भोग लगाएं और ब्राह्मणों को अन्न व दक्षिणा का दान करें। ऐसा करने से जीवनभर कोई कष्ट नहीं होता और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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