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जानें क्यों खास है धनुर्मास की वैकुण्ठ एकादशी? पूजा और दान से बदल जाएगी आपकी किस्मत!

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सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, और जब यह एकादशी धनुर्मास (तमिल पंचांग में ‘मार्गाज्ही मास’) में आती है, तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी या मुक्कोटी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि साक्षात मोक्ष (Salvation) का द्वार खोलने वाला महायोग है।

क्या आप जानते हैं कि क्यों इस विशेष दिन पर की गई पूजा और दान से आपकी किस्मत सचमुच बदल सकती है? आइए, इस अद्वितीय पर्व के महत्व, पौराणिक कथा, और आपके जीवन को बदलने वाली पूजा व दान विधि (Puja and Donation Procedure) पर विस्तार से जानते हैं।

धनुर्मास की वैकुण्ठ एकादशी क्यों है इतनी ख़ास? (Why is Vaikuntha Ekadashi in Dhanurmas so Special?)

इस एकादशी को सभी 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं:

  • वैकुण्ठ द्वार का खुलना – धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के निवास स्थान वैकुण्ठ लोक के द्वार खुलते हैं। इसलिए जो भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, उन्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा लेते हैं।
  • देवी एकादशी का प्राकट्य – पद्म पुराण के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु की शक्ति से एक दिव्य स्त्री शक्ति प्रकट हुई थी, जिन्होंने मुरन नामक क्रूर राक्षस का वध किया था। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें एकादशी नाम दिया और वरदान दिया कि जो कोई इस दिन उनका व्रत करेगा, उसे पापों से मुक्ति और वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी। यह घटना धनुर्मास (Dhanurmas) में शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुई थी, इसलिए इस एकादशी का महत्व सर्वाधिक है।
  • अतिरिक्त महत्व – दक्षिण भारत में इसे ‘स्वर्ग वथिल एकादशी’ (Swarga Vathil Ekadashi) और पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से योग्य संतान सुख (Child Happiness) की भी प्राप्ति होती है।

कैसे करें पूजा और बदलें अपनी किस्मत? (Puja Vidhi for Good Fortune)

वैकुण्ठ एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। यहां एक सरल और प्रभावशाली पूजा विधि दी गई है:

  • दशमी तिथि को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें, यह रंग भगवान विष्णु को अति प्रिय है। हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें कि आप पूरी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करेंगे।
  • घर के मंदिर में भगवान विष्णु (Shree Hari Vishnu) और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। घी का दीप जलाएं। भगवान को तुलसी दल, तिल, फल, फूल, पंचामृत और मिष्ठान्न (Sweets) अर्पित करें।
  • ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। वैकुण्ठ एकादशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  • विशेष रूप से, इस दिन विष्णु मंदिरों में बनाए गए ‘वैकुण्ठ द्वार’ (उत्तरी द्वार) से गुजरना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • संभव हो तो दिनभर निराहार (निर्जला) या फलाहार व्रत करें। रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन और मंत्रों का जाप करें।
  • अगले दिन (द्वादशी तिथि) सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। इसके बाद तुलसी मिश्रित जल से अपना व्रत खोलें, इसे पारण कहते हैं।

दान का विशेष महत्व – क्यों बदल जाती है किस्मत? (The Power of Donation)

वैकुण्ठ एकादशी के दिन दान-पुण्य करने का विशेष विधान है। इस दिन किया गया दान कई गुना फल देता है और आपके कर्मों का बोझ (Karma Burden) हल्का करता है।

  • तिल (Sesame Seeds) – पितरों को मोक्ष की प्राप्ति, पापों का नाश।
  • अनाज, भोजन व वस्त्र – आर्थिक संकटों का निवारण, घर में सुख-समृद्धि।
  • कंबल या गर्म कपड़े – आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति और ग्रह शांति।
  • तुलसी का पौधा – घर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का वास।
  • गाय का दान (यदि संभव हो) – वाजपेय यज्ञ के समान फल और मोक्ष की प्राप्ति।

दान का आध्यात्मिक लाभ (Spiritual Gain)

वैकुण्ठ एकादशी पर दान करने से केवल भौतिक लाभ ही नहीं होता, बल्कि यह आपके बृहस्पति ग्रह (Planet Jupiter) को भी मजबूती देता है, जिससे जीवन में वैभव, सफलता और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह दान आपके मन को शुद्ध करता है, और आप परमात्मा के और निकट पहुँचते हैं।

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