॥ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र की विधि ॥
- सबसे पहले सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहन एक आसन पर विराजमान हो जाएं।
- इसके बाद मां दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा पर पुष्प, माला आदि अर्पित करें।
- इसके बाद शांत मन से एकाग्र होकर महिषासुरमर्दिनी स्रोत का पाठ करें।
॥ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र से लाभ ॥
- इस स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
- महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने वाला कभी नरक में नहीं जाता है।
॥ महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम ॥
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि
विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि
विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि
भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि
दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि
किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि
दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब
वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय
शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि
कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड
वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड
पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड
विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित
दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव
दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति
दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर
वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि
शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनाद
महोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत
धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज
समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव
तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग
परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग
रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग
घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
सुरललना ततथेयि तथेयि
कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल
कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित
ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
जय जय जप्य जयेजय
शब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत
नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट
नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः
सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी
रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमर
भ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुर
मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक
मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक
झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण
तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर
मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि
रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस
मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
कमलदलामल कोमलकान्ति
कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम
केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल
मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
करमुरलीरव वीजितकूजित
लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित
रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण
सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र
मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर
दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित
निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक
सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक
सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि
समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति
योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये
कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनु
शीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
कनकलसत्कलसिन्धु
जलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ
तटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि
नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं
सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी
सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने
भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि मयि दीन दयालुतया
कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि
यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुता
दुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
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