मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष में आती है और इसे वर्ष की सबसे पवित्र एकादशियों में से एक माना जाता है। ‘मोक्षदा’ का अर्थ है मोक्ष प्रदान करने वाली। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उपवास करने से न केवल स्वयं के पापों का नाश होता है, बल्कि पितरों को भी मुक्ति मिलती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा वैखानस ने इसी व्रत के पुण्य से अपने पिता को नरक से मुक्ति दिलाई थी। यह एकादशी इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह व्रत जीवन के बंधनों से मुक्त कर, परम शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
|| मोक्षदा एकादशी पूजा विधि ||
- इस दिन सुबह जल्दी उठ जाएं। फिर मंदिर और घर को अच्छे से साफ करें। पूरे घर में गंगाजल छिड़क लें।
- स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- विष्णु जी को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर उन्हें रोली, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें।
- सबसे पहले भगवान गणेश की आरती करें। फिर विष्णु जी की आरती कर लक्ष्मी जी की भी आरती करें।
- एकादशी के अगले दिन द्वादशी को पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन व दान-दक्षिणा दें।
- इसके बाद ही भोजन करें और व्रत का पारण करें।
|| मोक्षदा एकादशी व्रत कथा (Mokshada Ekadashi Vrat Katha PDF) ||
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रातः वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है।
उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं? राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है।
अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उधार न कर सकें।एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते।
ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार लिए।
राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया।
उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी।
मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत चिंतामणी के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष देता है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।
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