॥ श्री पंचरत्न गणपति स्तोत्र पाठ विधि/लाभ ॥
- पंचरत्न स्तोत्र पाठ के लिए साधक को सबसे पहले सुबह स्नान कर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर पाठ करना चाहिए।
- पंचरत्न स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन को शांति मिलती है।
- इसके जाप से जीवन से सभी बुराई दूर होती है और साधक को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि मिलती है।
॥ श्री पंचरत्न गणपति स्तोत्र एवं अर्थ ॥
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं,
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं,
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम्॥
अर्थ: मैं श्री गणेश भगवान को बहुत ही विनम्रता के साथ अपने हाथों से मोदक प्रदान (समर्पित) करता हूं, जो मुक्ति के दाता- प्रदाता हैं। जिनके सिर पर चंद्रमा एक मुकुट के समान विराजमान है, जो राजाधिराज हैं और जिन्होंने गजासुर नामक दानव का वध किया था, जो सभी के पापों का आसानी से विनाश कर देते हैं, ऐसे गणेश भगवान जी की मैं पूजा करता हूं॥
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं,
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।
सुरेश्वरं निधीवरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वर,
तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥
अर्थ: मैं उन गणेश भगवान पर सदा अपना मन और ध्यान अर्पित करता हूं जो हमेशा उषा काल की तरह चमकते रहते हैं, जिनका सभी राक्षस और देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों में सबसे सर्वोत्तम हैं। उन सुरेश्वर, निधियों के अधिपति, गजेन्द्रशासक, महेश्वर, परात्पर गणेश्वर का मैं निरंतर आश्रय ग्रहण करता हूं।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं,
दरेतरोदर वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं,
नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्॥
अर्थ: जो समस्त लोकों का कल्याण करने वाले हैं, जिन्होंने गजाकार दैत्य का विनाश किया है। जो लम्बोदर, श्रेष्ठ, अविनाशी एवं गजराज वदन हैं। जो कृपा, क्षमा और आनन्द की निधि हैं, जो यश प्रदान करने वाले तथा नमनशीलों को मन से सहयोग देने वाले हैं, उन प्रकाशमान देवता गणेश जी को मैं प्रणाम करता हूं।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं,
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम्।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं,
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम्॥
अर्थ: जो अकिंचन-जनों की पीड़ा दूर करने वाले तथा चिरंतन उक्ति के भाजन हैं, जिन्हें त्रिपुरारी शिव के ज्येष्ठ पुत्र होने का गौरव प्राप्त है, जो देव-शत्रुओं के गर्व को चूर्ण कर देने वाले हैं, दृश्य-प्रपंच का संहार करते समय जिनका रूप भीषण हो जाता है, धनंजय आदि नाग जिनके भूषण हैं तथा जो गण्डस्थल दान की धारा बहाने वाले गजेन्द्र रूप हैं, उन पुरातन गजराज गणेश का मैं भजन करता हूं।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मज-
मचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां,
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम्॥
अर्थ: जिनकी दन्तकान्ती नितान्त कमनीय है, जो मृत्युंजय शिव के पुत्र हैं, जिनका रूप अचिन्त्य एवं अनन्त है, जो समस्त विघ्नों का उच्छेद करने वाले हैं तथा योगियों के हृदय के भीतर जिनका निरंतर निवास है, उन एकदन्त गणेश का मैं सदा चिंतन करता हूं।
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं,
प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां,
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥
अर्थ: जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल मन में श्री गणेश का स्मरण करते हुए इस ‘महागणेश पंचरत्न’ का आदरपूर्वक उच्चस्वर से गान करता है, वह शीघ्र आरोग्य, निर्दोषता, उत्तम ग्रन्थों एवं सत्पुरुषों का संग, उत्तम पुत्र, दीर्घायु एवं अष्ट सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है।
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