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शिव तंत्र – अघोरियों के रहस्यमय साधना पथ की कहानी

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अघोरी यह शब्द सुनते ही मन में एक अजीब सी उत्सुकता और थोड़ा डर पैदा हो जाता है। शमशान में रहने वाले, राख लगाए हुए, भयानक रूप वाले इन साधुओं के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन, अघोरियों का जीवन सिर्फ इन कहानियों तक सीमित नहीं है। उनका साधना पथ (spiritual path) ‘शिव तंत्र’ से जुड़ा हुआ है, जो अपने आप में एक गहरा और रहस्यमय विज्ञान है। इस ब्लॉग में, हम अघोरियों के इसी अनोखे और चुनौतीपूर्ण साधना पथ की गहराई में उतरने का प्रयास करेंगे।

शिव तंत्र – क्या है और इसका महत्व?

शिव तंत्र, एक प्राचीन और गहन आध्यात्मिक परंपरा (spiritual tradition) है, जिसका मूल भगवान शिव में निहित है। यह सिर्फ पूजा-पाठ का तरीका नहीं, बल्कि जीवन को संपूर्णता से देखने का एक दर्शन है। शिव को संहारक (destroyer) और सृजनकर्ता (creator) दोनों माना जाता है। शिव तंत्र इसी द्वैत (duality) को स्वीकार करता है और मानता है कि जीवन और मृत्यु, सुख और दुख, पवित्रता और अपवित्रता, ये सभी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

अघोरी इसी शिव तंत्र के सबसे कट्टर अनुयायी (devotees) माने जाते हैं। उनका लक्ष्य इन सभी द्वैतों से ऊपर उठकर परम शिव तत्व को प्राप्त करना है।

अघोरियों का साधना पथ – क्यों है इतना अलग?

अघोरियों का साधना पथ सामान्य साधनाओं से बिल्कुल अलग है। वे ‘सामाजिक’ मर्यादाओं (social norms) से परे जाकर साधना करते हैं। यह कोई दिखावा नहीं, बल्कि उनके दर्शन का एक अनिवार्य हिस्सा है। आइए, उनके साधना पथ की कुछ खास बातों को जानें:

  • श्मशान साधना (Cremation Ground Practice) – अघोरियों के लिए श्मशान सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक साधना स्थल (meditation ground) है। उनका मानना है कि मृत्यु सबसे बड़ा सच है और यहीं पर जीवन की नश्वरता का एहसास होता है। वे यहां साधना करके मृत्यु के भय (fear of death) पर विजय प्राप्त करते हैं।
  • अपवित्रता में पवित्रता की खोज – अघोरी उन चीजों का उपयोग करते हैं जिन्हें समाज ‘अपवित्र’ मानता है, जैसे कि जानवरों की खोपड़ी (skull), राख आदि। यह उनके दर्शन का हिस्सा है कि कोई भी वस्तु अपने आप में अपवित्र नहीं होती। अपवित्रता या पवित्रता का विचार मन में होता है। वे इन चीजों के साथ रहकर मन को इन विचारों से मुक्त करते हैं।
  • पंच मकार (Panchamakara) का रहस्य – तंत्र में ‘पंच मकार’ का विशेष महत्व है, जिसमें मद्य (wine), मांस (meat), मत्स्य (fish), मुद्रा (gesture), और मैथुन (sexual intercourse) शामिल हैं। हालांकि, इन शब्दों के पीछे एक गहरा प्रतीकात्मक (symbolic) अर्थ है। अघोरी इन प्रतीकों का उपयोग अपनी कुंडलिनी शक्ति (kundalini energy) को जागृत करने के लिए करते हैं। यह एक बहुत ही संवेदनशील और जोखिम भरा (risky) मार्ग है, जिसे गुरु के मार्गदर्शन में ही किया जा सकता है।
  • भयानक स्वरूप का दर्शन – अघोरी अक्सर अपने शरीर पर राख लगाते हैं, जानवरों की खाल पहनते हैं और उनका स्वरूप डरावना होता है। यह सिर्फ एक वेशभूषा नहीं, बल्कि अहंकार (ego) को त्यागने का एक प्रतीक है। उनका मानना है कि जब तक शरीर और उसकी सुंदरता का मोह रहेगा, तब तक आत्मज्ञान (self-realization) संभव नहीं है।

अघोरियों के बारे में कुछ गलतफहमियां

समाज में अघोरियों के बारे में कई गलत धारणाएं (misconceptions) हैं। उन्हें अक्सर जादू-टोना (black magic) करने वाले या दुष्ट शक्तियों के उपासक के रूप में देखा जाता है। हालांकि, यह सच से बहुत दूर है। अघोरी अपनी साधना का उपयोग किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करते, बल्कि वे अपनी चेतना (consciousness) को उच्च स्तर पर ले जाने का प्रयास करते हैं।
अघोरी दयालु भी होते हैं और समाज के सबसे उपेक्षित (marginalized) लोगों की मदद करते हैं। वे अक्सर बीमार और गरीब लोगों का इलाज करते हैं और उन्हें भोजन भी कराते हैं।

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