Durga Ji

श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा

Shri Durga Navratri Vrat Katha Hindi

Durga JiVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा ||

प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी पुत्री सुमति अत्यंत सुंदर, गुणवान और भक्तिपूर्ण थी। वह प्रतिदिन अपने पिता के साथ दुर्गा माता की पूजा में सम्मिलित होती थी।

एक दिन, खेल में मग्न होने के कारण वह पूजन में सम्मिलित नहीं हो पाई। उसके पिता को यह देखकर क्रोध आया और उन्होंने कहा, “हे पुत्री! आज तुमने देवी का पूजन नहीं किया, इसलिए मैं तुम्हारा विवाह किसी कुष्ठ रोगी या दरिद्र व्यक्ति से कर दूँगा।”

पिता की कठोर वाणी सुनकर सुमति ने उत्तर दिया, “हे पिता! मैं आपकी कन्या हूँ, आप जो उचित समझें वही करें। किंतु मेरा विश्वास है कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।”

क्रोधित होकर पिता ने उसका विवाह एक कुष्ठ रोगी से कर दिया। सुमति अपने पति के साथ वन में चली गई। वह दुखी थी और देवी भगवती की आराधना करने लगी। भगवती दुर्गा उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और प्रकट होकर वरदान देने को कहा।

सुमति ने विनम्रता से निवेदन किया, “हे माता! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरे पति का कुष्ठ रोग दूर करें।”

देवी ने उत्तर दिया, “पिछले जन्म में तुमने अनजाने में नवरात्रि व्रत किया था, जिसके फलस्वरूप मैं प्रसन्न हुई। यदि तुम इस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति के लिए अर्पित कर दो, तो उसका रोग समाप्त हो जाएगा।”

सुमति ने सहर्ष स्वीकृति दी और उसके पति का कुष्ठ रोग समाप्त हो गया। सुमति ने देवी दुर्गा की स्तुति की और देवी ने आशीर्वाद दिया कि उसके घर में धन-धान्य, संतान और सुख-समृद्धि सदैव बनी रहेगी।

“बोलो जय माता दी!”

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