॥ दोहा॥
जय जगन्नाथ स्वामी जय बलभद्र संभाव।
जय सुबद्रा ताई अग्या करैं सब काज॥
॥ चालीसा॥
जय जगन्नाथ दयालु दया निधान।
करुणा रस सिन्धु नयन अन्धकार।।
कटकट धनुस विराजत शंखाधार।
मुख में कमल नैनन में चकार।।
कनकमय शीश नव चारु चंद्र भाला।
नख सिखर छवि गंजित सोहे बाला।।
अरुणांचल मुकुट श्रिया सोहत नूप।
मुख में मुरली बनमाल अजरे।।
शंख बाजे मृदुँग बाजत ताल।
वज्रांकुश गदा शुभ बदन काल।।
रक्त अंग वस्त्र बिभूषण बाजत।
प्रतीत शोभित नील विशाल जाजत।।
आवत धावत तब जू तार गृहवत।
कारज सर्व करैं सुधीर बुधवत।।
शची जब भय भए सागर पार।
रामदास कहैं बेद बिख्यात।।
श्री जगन्नाथ चालीसा जो कोई।
गावैं पाठ करैं कलेश नखटाई।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
तेस ही कृपा करहु जगदीश।।
॥ दोहा॥
पवन तनय संकट हरण गोसाई।
कृपा द्रिष्टि तुम्हारी करहु विलासा।।
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