॥ श्री पंचरत्न गणपति स्तोत्र ॥
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं,
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं,
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम्॥
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं,
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।
सुरेश्वरं निधीवरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वर,
तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं,
दरेतरोदर वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं,
नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्॥
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं,
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम्।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं,
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम्॥
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मज-
मचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां,
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम्॥
महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं,
प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां,
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥
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