Hanuman Ji

साल के अंत में क्यों मनाई जाती है तमिल हनुमान जयंती? जानिए पौराणिक कथा और विशेष परंपराएं।

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भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर त्योहार के पीछे गहरा अर्थ और विविधता छिपी होती है। जब उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा (मार्च-अप्रैल) के दौरान हनुमान जयंती की धूम होती है, ठीक उसी समय के लगभग 8-9 महीने बाद दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में, ‘तमिल हनुमान जयंती’ बेहद भव्य तरीके से मनाई जाती है।

वर्ष 2025 में यह पर्व 19 दिसंबर को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं कि साल के अंत में मनाई जाने वाली इस हनुमान जयंती का क्या महत्व है और इससे जुड़ी अनोखी परंपराएं क्या हैं।

क्यों अलग है तमिल हनुमान जयंती का समय?

तमिल पंचांग के अनुसार, हनुमान जी का जन्म ‘मार्गशीर्ष’ (Margazhi) महीने की अमावस्या तिथि को ‘मूलम’ (Moolam) नक्षत्र में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से यह समय दिसंबर के अंत या जनवरी की शुरुआत में आता है।

जबकि उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाने के पीछे तर्क यह है कि उस दिन हनुमान जी ने सूर्य को फल समझकर निगलने की कोशिश की थी, जिसे उनके ‘वैचारिक जन्म’ या शक्ति के प्रकटीकरण के रूप में देखा जाता है। वहीं, दक्षिण भारतीय परंपराएं उनके वास्तविक जन्म नक्षत्र (मूलम) को प्राथमिकता देती हैं।

पौराणिक कथा – मूलम नक्षत्र और हनुमान जी का जन्म

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अंजना देवी और केसरी के पुत्र हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार माने जाते हैं। तमिल ग्रंथों में वर्णन है कि:

  • मूलम नक्षत्र का महत्व – ज्योतिष शास्त्र में ‘मूलम’ नक्षत्र को बहुत शक्तिशाली माना जाता है। हनुमान जी ने इसी नक्षत्र में जन्म लिया ताकि वे रावण (जो स्वयं एक महान ज्योतिष और विद्वान था) के अहंकार को नष्ट कर सकें।
  • अमावस्या का चयन: आमतौर पर अमावस्या को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है, लेकिन हनुमान जी के जन्म ने इस दिन को अत्यंत पवित्र बना दिया। यह संदेश देता है कि घोर अंधकार (अमावस्या) में भी ज्ञान और शक्ति का प्रकाश (हनुमान) प्रकट हो सकता है।

तमिल हनुमान जयंती की विशेष परंपराएं

तमिलनाडु के मंदिरों (जैसे नामक्कल अंजनेयर मंदिर) में इस दिन कुछ ऐसी रस्में निभाई जाती हैं जो आपको देश के अन्य हिस्सों में देखने को नहीं मिलेंगी:

  • वड़ा माला (Vada Mala) अर्पण – यहाँ हनुमान जी को फूलों की माला के साथ-साथ ‘मेदु वड़ा’ की माला चढ़ाई जाती है। भक्त 108 या 1008 वड़ों की माला बनाकर प्रभु को अर्पित करते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि राहु के दोषों को दूर करने के लिए उड़द की दाल से बने वड़े हनुमान जी को प्रिय हैं।
  • मक्खन का लेप (Butter Alankaram) – हनुमान जी की प्रतिमा पर भारी मात्रा में ताज़ा मक्खन लगाया जाता है। माना जाता है कि रावण के साथ युद्ध के दौरान हनुमान जी के शरीर में जो गर्मी और थकान उत्पन्न हुई थी, उसे ठंडा करने के लिए भक्त प्रेमवश उन्हें मक्खन लगाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि भीषण गर्मी में भी यह मक्खन पिघलता नहीं है।
  • पान के पत्तों की माला (Betel Leaf Garland) – तमिल परंपरा में हनुमान जी को ‘वेत्रिलई माला’ (पान के पत्तों की माला) चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। कथा है कि जब हनुमान जी ने माता सीता को प्रभु श्री राम का संदेश सुनाया, तो माता सीता ने प्रसन्न होकर पास ही मौजूद पान की बेल से पत्ते तोड़कर हनुमान जी पर बरसाए थे।

इसका आध्यात्मिक महत्व

साल के अंत में हनुमान जयंती का आना एक प्रतीकात्मक अर्थ भी रखता है। मार्गशीर्ष का महीना आध्यात्मिक साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है (गीता में कृष्ण ने स्वयं को महीनों में मार्गशीर्ष कहा है)।

  • संकल्प की शक्ति – साल खत्म होने से पहले हनुमान जी की पूजा हमें आने वाले वर्ष के लिए मानसिक शक्ति और बाधाओं से लड़ने का साहस देती है।
  • ग्रह दोष निवारण – चूंकि शनि और राहु के दोषों के लिए हनुमान जी की पूजा अचूक मानी जाती है, इसलिए इस दिन की गई पूजा पूरे वर्ष के नकारात्मक प्रभावों को समाप्त करती है।

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