|| शाकम्भरी देवी की कथा ||
प्राचीन काल में दुर्गम नाम का एक शक्तिशाली और अहंकारी दैत्य था। उसके पिता महादैत्य रूरू थे। एक दिन दुर्गम ने सोचा, “देवताओं की शक्ति और उनकी सत्ता वेदों में निहित है। यदि वेदों को नष्ट कर दिया जाए, तो देवताओं का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।” इस विचार के साथ उसने वेदों को प्राप्त करने और देवताओं को परास्त करने की योजना बनाई।
दुर्गम ने हिमालय पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या आरंभ की। वह केवल वायु के सहारे एक हजार वर्षों तक तप करता रहा। उसकी कठोर तपस्या से देवता, दानव और समस्त जीव-जंतु भयभीत और आश्चर्यचकित हो उठे। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और बोले, “तुम्हारी तपस्या से मैं प्रसन्न हूँ। वर मांगो।”
दुर्गम ने ब्रह्माजी से सभी वेदों को प्राप्त करने और देवताओं को पराजित करने की शक्ति का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने “तथास्तु” कहकर उसे वरदान दे दिया। इसके बाद वेदों का अभाव हो गया, जिससे यज्ञ, पूजा और धार्मिक क्रियाएँ समाप्त हो गईं। ब्राह्मण तामसिक आचरण करने लगे, और संसार में घोर अनर्थ व अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस संकट से छुटकारा पाने के लिए ब्राह्मण और देवता हिमालय की शिवालिक पर्वतमाला में जाकर भगवती जगदम्बा की उपासना करने लगे। उन्होंने कठोर तप और स्तुति की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवती भुवनेश्वरी प्रकट हुईं। उनका स्वरूप अद्भुत था—उनकी काया काले पर्वत जैसी, नेत्र नीलकमल के समान, और हाथों में कमल और अन्य दिव्य शस्त्र सुशोभित थे। देवी ने अपनी करूणा से पृथ्वी पर जल की वर्षा कर दी, जिससे नौ दिन और रात तक भूख से पीड़ित प्राणियों को राहत मिली।
देवताओं और ब्राह्मणों ने देवी की स्तुति करते हुए उनसे सहायता मांगी। देवी ने अपनी शक्ति से विभिन्न प्रकार के शाक, फल, अन्न, और पशुओं के लिए घास उत्पन्न कर सबको दिया। इस कारण उनका नाम “शाकम्भरी” पड़ा।
इस बीच, दुर्गमासुर को देवताओं की स्थिति का पता चला, और वह अपनी विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए आया। भगवती शाकम्भरी ने अपनी दिव्य शक्तियों से उसका सामना किया। उनकी माया से कई शक्तियाँ प्रकट हुईं, जिन्होंने दानवों की सेना का नाश कर दिया। अंततः देवी और दुर्गमासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जो इक्कीस दिनों तक चला।
इक्कीसवें दिन, देवी के पाँच बाण दुर्गम की छाती में लगे, और वह प्राणहीन होकर गिर पड़ा। देवी ने वेदों को वापस देवताओं को सौंप दिया। इस प्रकार, भगवती शाकम्भरी ने संसार की रक्षा की और सभी संकटों को दूर किया।
जो भक्त इस कथा का श्रद्धापूर्वक श्रवण या पाठ करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और अंत में उन्हें देवी के परमधाम की प्राप्ति होती है। भगवती शाकम्भरी को कोटिशः प्रणाम!
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