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आयुध पूजा 2025 – क्यों होते हैं अस्त्र-शस्त्र पूजित? जानें इतिहास, कथा और पूजा विधि

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भारत, जिसे त्योहारों की भूमि कहा जाता है, यहाँ हर पर्व किसी न किसी गहरे अर्थ और परंपरा से जुड़ा होता है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्योहार है ‘आयुध पूजा’ (Ayudha Puja)। यह पर्व, जिसे कई स्थानों पर शस्त्र पूजा या अस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है, विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि (Navratri) के अंतिम चरण, यानी महानवमी (Maha Navami) के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2025 में, आयुध पूजा 1 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी।

यह केवल युद्ध के हथियारों की पूजा नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवनयापन और आजीविका (Livelihood) में सहायक सभी उपकरणों, औजारों, मशीनों और वाहनों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता (Gratitude) व्यक्त करने का एक अनूठा तरीका है। आइए, इस खास पर्व के इतिहास, कथा और पूजा विधि को विस्तार से जानें।

आयुध पूजा का इतिहास और महत्व (Significance)

‘आयुध’ शब्द का अर्थ है ‘उपकरण’ या ‘हथियार’ और ‘पूजा’ का अर्थ है ‘आराधना’। प्राचीन काल से ही, मानव जीवन में अस्त्र-शस्त्र का बहुत बड़ा महत्व रहा है, क्योंकि वे रक्षा और शक्ति (Power) के प्रतीक थे। समय के साथ, इस पूजा का विस्तार हुआ और इसमें दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले सभी ‘साधनों’ (Tools) को शामिल किया गया, जो हमारी जीविका का आधार हैं।

यह त्योहार इस बात का संदेश देता है कि जिन उपकरणों की सहायता से हम अपना जीवन चलाते हैं, वे भी पूजनीय हैं। उनकी शक्ति और हमारे काम के प्रति सम्मान व्यक्त करना ही इस पूजा का मुख्य उद्देश्य है। दक्षिण भारत के राज्यों जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में यह पर्व बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है।

आयुध पूजा से जुड़ी दो मुख्य पौराणिक कथाएँ

इस त्योहार से दो प्रमुख पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो इसके महत्व को और भी गहरा करती हैं:

महाभारत की कथा अर्जुन का अज्ञातवास – महाभारत (Mahabharata) की कहानी के अनुसार, जब पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास (Incognito Period) के लिए जाना पड़ा, तो अर्जुन ने अपने सभी दिव्य और शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्रों को एक शमी वृक्ष में छिपा दिया था।

जब उनका अज्ञातवास पूरा हुआ, तो विजयदशमी (Dussehra) के दिन ही उन्होंने अपने उन हथियारों को पुनः प्राप्त किया और कुरुक्षेत्र के युद्ध में जाने से पहले, उन्होंने उनकी विधिवत पूजा की। यह घटना दर्शाती है कि जीवन के महत्वपूर्ण समय में, हमारे ‘साधन’ ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति होते हैं, और इसलिए उनका सम्मान आवश्यक है।

देवी दुर्गा की कथा महिषासुर पर विजय – आयुध पूजा को नवरात्रि के अंतिम दिन मनाए जाने का संबंध देवी दुर्गा (Goddess Durga) से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ दुर्गा ने अपनी शक्ति और विभिन्न देवताओं द्वारा प्रदान किए गए अस्त्रों-शस्त्रों की सहायता से दुष्ट राक्षस महिषासुर (Mahishasura) का संहार किया था।

लगातार नौ दिनों तक चले भयंकर युद्ध के बाद, जब उन्होंने राक्षस को मार गिराया, तो उन्होंने अपने सभी शस्त्रों को शांत किया। माना जाता है कि देवताओं ने इस विजय के बाद देवी के ‘आयुधों’ की कृतज्ञतापूर्वक पूजा की थी। यह कहानी बताती है कि शक्ति और सफलता (Success) के लिए ‘साधनों’ का महत्व कितना अधिक है।

आयुध पूजा 2025 – शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat) और तिथि

आयुध पूजा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की महानवमी तिथि को की जाती है।

  • तिथि – बुधवार, 1 अक्टूबर 2025
  • नवमी तिथि प्रारम्भ – 30 सितंबर 2025, शाम 6:06 बजे
  • नवमी तिथि समाप्त – 1 अक्टूबर 2025, शाम 7:01 बजे
  • पूजा का शुभ समय (विजय मुहूर्त) – दोपहर 2:28 बजे से 3:16 बजे तक

आयुध पूजा की सरल और सही पूजा विधि

आयुध पूजा केवल अस्त्र-शस्त्र तक ही सीमित नहीं है। इस दिन आप अपने दफ्तर के उपकरण (Computer, Laptop), छात्रों की किताबें, कलाकारों के वाद्य यंत्र (Musical Instruments), व्यापारियों की तराजू, कारीगरों के औजार (Tools) और वाहनों (Vehicles) आदि की पूजा कर सकते हैं।

  • सबसे पहले, पूजा किए जाने वाले सभी उपकरणों और वस्तुओं को अच्छी तरह से साफ करें। यह पूजा का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। वाहनों को धोकर चमका लें। सफाई प्रतीकात्मक रूप से उन पर लगी नकारात्मकता (Negativity) को दूर करती है।
  • सभी उपकरणों को एक साफ स्थान पर रखें। उन्हें हल्दी (Turmeric) और कुमकुम (Vermillion) से तिलक लगाएं। आप रंगीन फूलों, मालाओं और आम के पत्तों से भी उन्हें सजा सकते हैं।
  • स्नान आदि के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, चौकी पर माता सरस्वती (Goddess Saraswati) या देवी दुर्गा की प्रतिमा/तस्वीर स्थापित करें। हाथ में जल लेकर अपने काम के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए पूजा का संकल्प लें।
  • सबसे पहले देवी की विधिवत पूजा करें। उन्हें धूप, दीप, अक्षत, रोली और पुष्प अर्पित करें। इसके बाद, सभी उपकरणों पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें शुद्ध करें और उन पर रोली-कुमकुम का तिलक करें।
  • पूजा के बाद, मीठे पकवान जैसे हलवा, खीर या कोई मौसमी फल अर्पित करें।
  • अंत में, सभी उपकरणों और देवी की आरती करें। अपने काम में सफलता, सुरक्षा (Safety) और समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।

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