मंशा महादेव व्रत की कथा में बताया जाता है कि यह व्रत देवी-देवताओं द्वारा किया गया था और इसे मनुष्यों द्वारा भी किया जाना चाहिए। मान्यता है कि भगवान इंद्र ने चन्द्रमा के श्राप के कारण हुए कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को किया था। इसी प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए और भगवान कार्तिकेय ने भी यह व्रत किया था। कहा जाता है कि भगवान कार्तिकेय ने इस व्रत की महिमा राम ब्राह्मण नामक व्यक्ति को बताई थी, जिससे उसे अवंतिकापुरी के राजा की कन्या पत्नी के रूप में प्राप्त हुई थी।
मंशा महादेव व्रत पूजन विधि
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की विनायकी चतुर्थी से यह व्रत प्रारंभ होता है। इस दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें। मंशा महादेव व्रत के लिए भगवान शिव या नंदी का तांबे या पीतल का सिक्का बाजार से खरीदें और इसे स्टील की छोटी डिब्बी में रखें। मंदिर में शिवलिंग का पूजन करने से पहले सिक्के का पूजन करें, फिर शिवलिंग का। इसके बाद सूत का एक मोटा कच्चा धागा लें और अपनी मनोकामना महादेव से कहते हुए इस धागे पर चार गठान लगा दें। विद्वान ब्राह्मण से मंत्रोच्चार के साथ संकल्प लें और कथा का श्रवण करें। भगवान शिव का भोग लगाकर उनकी आरती उतारें।
इस व्रत को कार्तिक माह की विनायक चतुर्थी तक करें और इस दौरान हर सोमवार को शिवलिंग और सिक्के की पूजा करें। व्रत का समापन कार्तिक माह की विनायक चतुर्थी के दिन करें। इस दिन धागे की गठानें खोलकर भगवान शिव को पौने एक किलो आटे से बने लड्डुओं का भोग लगाएँ और लड्डुओं का वितरण करें। मंशा महादेव व्रत चार वर्षों तक चलता है और हर वर्ष केवल चार महीने ही इस व्रत को किया जाता है। इस व्रत के दौरान भगवान शिव बड़ी से बड़ी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
श्रावण से कार्तिक माह तक के हर सोमवार को शिवलिंग की पूजा करें, उसे दूध, दही से स्नान कराएँ, फिर स्वच्छ जल से। शिवलिंग पर चंदन, अबीर, गुलाल, रोली, चावल चढ़ाएँ, और फिर बेलपत्र और फूलों की माला चढ़ाएँ। व्रत के पहले दिन धागे पर जो गठान लगाई है, उसे सिक्के के पास ही रखें और व्रत के समापन के दिन ही धागे की गठान खोलें। हर वर्ष विभिन्न इच्छाओं के लिए भी यह व्रत किया जा सकता है।