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Bhaum Pradosh Vrat Katha – बुढ़िया और हनुमान जी की यह कथा सुनने मात्र से मिलते हैं अनगिनत पुण्य

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सनातन धर्म में व्रतों का विशेष महत्व है, और इन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत, जो हर महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। जब यह पवित्र तिथि मंगलवार के दिन पड़ती है, तो इसे भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहा जाता है। ‘भौम’ मंगल ग्रह का एक नाम है, और चूंकि मंगल का सीधा संबंध साहस, बल और ऋण (Debt) से है, इसलिए इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव और हनुमान जी, दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत को ‘रुण-विमोचन प्रदोष’ भी कहते हैं, जिसका अर्थ है- ऋणों से मुक्ति दिलाने वाला (Liberation from Debts)।

लेकिन इस व्रत को पूर्ण करने के लिए इसकी पवित्र कथा (Katha) को सुनना या पढ़ना अनिवार्य माना गया है। आइए, जानते हैं एक ऐसी ही अनूठी कथा, जो एक बुढ़िया और हनुमान जी की अटूट भक्ति की परीक्षा की कहानी है, जिसके सुनने मात्र से ही अनगिनत पुण्य मिलते हैं।

बुढ़िया और हनुमान जी की अद्भुत कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक बहुत ही धर्मपरायण (Pious) बुढ़िया रहती थी। उसका केवल एक ही पुत्र था, जिसका नाम मंगलिया था। बुढ़िया की भगवान हनुमान जी में गहरी और अटूट श्रद्धा (Unbreakable Faith) थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखती थी, पूरे विधि-विधान (Rituals) से बजरंगबली की पूजा करती थी और उन्हें भोग लगाती थी। इसके अलावा, उसका एक और नियम था- वह मंगलवार के दिन न तो अपने घर की मिट्टी लीपकर सफाई करती थी और न ही मिट्टी खोदती थी।

एक बार, बुढ़िया की इस सच्ची भक्ति की परीक्षा लेने का विचार हनुमान जी के मन में आया। उन्होंने एक वृद्ध साधु का रूप धारण किया और बुढ़िया के घर के बाहर आकर पुकारने लगे: “क्या इस घर में कोई हनुमान भक्त है, जो मेरी इच्छा पूरी कर सके?”

साधु की आवाज़ सुनकर बुढ़िया बाहर आई और श्रद्धा से झुककर प्रणाम किया। उसने पूछा, “महाराज, आपकी क्या आज्ञा है? मैं आपकी सेवा करने के लिए तैयार हूँ।”

हनुमान जी (साधु के वेश में) बोले, “पुत्री, मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है। मैं भोजन करना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले तुम ज़रा-सी ज़मीन लीप (Plaster/clean with cow dung paste) दो।”

बुढ़िया यह सुनकर चिंतित हो गई। उसने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, ज़मीन लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप जो भी काम कहेंगे, मैं वह अवश्य पूरा करूँगी। कृपया आप कोई और आज्ञा दें।”

साधु ने बार-बार ज़मीन लीपने का आग्रह किया, लेकिन बुढ़िया अपने नियम से नहीं डिगी। अंत में, साधु ने बुढ़िया से तीन बार वचन (Promise) लेने के बाद कहा, “ठीक है, अगर तुम मेरा एक अन्य काम कर सको, तो अपना पुत्र मंगलिया को बुलाओ। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर अपना भोजन तैयार करूँगा।”

यह सुनकर बुढ़िया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई (The ground beneath her feet slipped away)। उसका हृदय व्याकुल हो उठा, लेकिन वह अपने दिए हुए वचन से बंधी थी। धर्मसंकट में फँसी बुढ़िया ने भारी मन से अपने पुत्र मंगलिया को बुलाया और साधु के हवाले कर दिया। साधु ने बुढ़िया से ही मंगलिया को ज़मीन पर औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलवाई।

आग जलाकर, बुढ़िया गहरे दुख और पश्चाताप (Regret) में डूबकर घर के अंदर चली गई। वह अपने इकलौते बेटे की यह दशा देखना नहीं चाहती थी।

कुछ देर बाद, साधु ने बुढ़िया को पुकारते हुए कहा, “बुढ़िया! भोजन तैयार है, मंगलिया को भी बुला लो, वह भी आकर भोग लगा ले।”
बुढ़िया की आँखों में आँसू भर आए। उसने रोते हुए कहा, “महाराज! उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और न दुखाइए।”

लेकिन साधु नहीं माने और बुढ़िया को मंगलिया को भोजन के लिए पुकारना ही पड़ा। जैसे ही बुढ़िया ने ‘मंगलिया’ कहकर पुकारा, चमत्कार हो गया! मंगलिया बाहर से हँसता हुआ दौड़ता हुआ घर में आया।

मंगलिया को जीवित और स्वस्थ देखकर बुढ़िया को सुखद आश्चर्य (Pleasant Surprise) हुआ। वह तुरंत साधु के चरणों में गिर पड़ी। तब हनुमान जी अपने असली रूप (Real Form) में प्रकट हुए। उन्होंने बुढ़िया को उसकी अटूट भक्ति और धर्म-निष्ठा के लिए आशीर्वाद दिया और कहा कि आज से तुम्हारी सारी विपत्तियाँ (Calamities) दूर हो जाएंगी।

भौम प्रदोष व्रत का महत्व (Significance) – क्यों करें यह व्रत?

भौम प्रदोष व्रत में बुढ़िया और हनुमान जी की यह कथा सुनने मात्र से भक्त को अनगिनत पुण्य मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से निम्न कारणों से अत्यंत फलदायी (Fruitful) माना जाता है:

  • इस व्रत को ‘रुण-विमोचन प्रदोष’ भी कहते हैं। मंगलवार के स्वामी मंगल ग्रह को ऋण और विवादों (Disputes) का कारक माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति को जल्द से जल्द कर्ज से मुक्ति मिलती है।
  • मंगल को ऊर्जा और रक्त का कारक माना जाता है। इस व्रत को करने से शारीरिक कष्ट और पुराने रोग दूर होते हैं।
  • हनुमान जी स्वयं बल और साहस के प्रतीक हैं। उनकी कृपा से भक्त को सभी शत्रुओं (Enemies) पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में निर्भीकता (Fearlessness) आती है।
  • यह व्रत मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव (Negative Effects) को कम करने में भी सहायक है।
  • प्रदोष काल में भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

व्रत की विधि (Puja Vidhi) – कैसे करें भौम प्रदोष व्रत?

भौम प्रदोष व्रत के दिन व्रती को (Devotee) ये नियम अपनाने चाहिए:

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूरे दिन निराहार (Fasting) रहें या फल-दूध का सेवन करें।
  • संकल्प: ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • प्रदोष काल (Twilight Period): सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद का समय ‘प्रदोष काल’ कहलाता है। पूजा इसी समय करनी चाहिए।
  • भगवान शिव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक कराएं। बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, धूप और दीप अर्पित करें। लाल चंदन (Red Sandalwood) का प्रयोग शुभ होता है।
  • इसके बाद हनुमान जी की पूजा करें। उन्हें लाल फूल, सिंदूर, चमेली का तेल और बूंदी का भोग लगाएं। हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें।
  • अंत में, इस अद्भुत भौम प्रदोष व्रत कथा को स्वयं पढ़ें या सुनें।
  • पूजा के बाद व्रत का पारण करें। इस दिन गेहूं और गुड़ से बने भोजन का सेवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

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