प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि (Trayodashi Tithi) को आने वाला प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के समय की गई शिव पूजा (Lord Shiva Worship) अक्षय फल देती है। जब यह शुभ तिथि मंगलवार (Tuesday) को पड़ती है, तब इसे “भौम प्रदोष व्रत” कहा जाता है। ‘भौम’ मंगल ग्रह का ही एक नाम है, और इस दिन शिव आराधना से व्यक्ति को महादेव की असीम कृपा के साथ-साथ मंगल देव (Mangal Dev) का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इस अद्भुत संयोग में जो भक्त सच्चे मन से व्रत और पूजा करता है, उसे न केवल वर्तमान जीवन के सभी दुखों और आर्थिक परेशानियों (Financial Troubles) से मुक्ति मिलती है, बल्कि वह 100 जन्मों तक दरिद्रता के बंधन से भी मुक्त हो जाता है। आइए, जानते हैं इस मंगलकारी व्रत का महत्व, लाभ और शिव-मंगल देव को प्रसन्न करने की संपूर्ण विधि।
भौम प्रदोष व्रत का अनूठा महत्व (Unique Significance)
भौम प्रदोष व्रत का महत्व अन्य प्रदोष व्रतों की तुलना में और भी अधिक माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव और मंगल ग्रह के शुभ संयोग को दर्शाता है।
- मंगल ग्रह को ऋण (Loan) और कर्ज का कारक माना जाता है। इस दिन शिव जी और मंगल देव की संयुक्त पूजा करने से व्यक्ति को शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। इसे “ऋणमोचक प्रदोष” भी कहा जाता है।
- जिनकी कुंडली (Kundli) में मंगल ग्रह अशुभ स्थिति में होता है या मंगल दोष होता है, उनके लिए यह व्रत रामबाण (Panacea) का काम करता है।
- मंगल साहस, बल, और ऊर्जा का देवता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास (Self-Confidence) और पराक्रम बढ़ता है, जिससे वह हर क्षेत्र में सफलता (Success) प्राप्त करता है।
- यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाकर उत्तम स्वास्थ्य (Good Health) और लंबी आयु प्रदान करने वाला भी माना जाता है।
भौम प्रदोष व्रत की सरल एवं संपूर्ण पूजा विधि (Complete Worship Method)
भौम प्रदोष की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण समय ‘प्रदोष काल’ होता है, जो सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है।
व्रत का संकल्प और तैयारी
- सूर्योदय (Sunrise) से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र (Clean Clothes) पहनें।
- हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें और दिन भर उपवास (Fast) रखें। यदि पूर्ण उपवास न कर सकें, तो फलाहार (Fruits) ले सकते हैं।
- पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे- बेलपत्र (Belpatra), धतूरा, भांग, सफेद फूल, गंगाजल, गाय का दूध, चंदन, धूप-दीप, और मीठी रोटी/गुड़-चावल का भोग (Prasad) तैयार कर लें।
प्रदोष काल में शिव पूजा
- शाम के समय, प्रदोष काल शुरू होने से पहले पुनः स्नान करें या हाथ-पैर धोकर शुद्ध हो जाएं।
- पूजा स्थल (Worship Place) को साफ करें और गोबर या गंगाजल से शुद्ध करें।
- एक चौकी (Platform) पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या शिवलिंग (Shivling) स्थापित करें।
- अभिषेक (Abhishek): शिवलिंग पर गंगाजल, गाय का दूध, दही, शहद, घी, शक्कर (पंचामृत) से अभिषेक करें। अभिषेक करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते रहें।
- शिवलिंग को चंदन का लेप लगाएं। इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद पुष्प, अक्षत (चावल) और शमी पत्र अर्पित करें। धूप-दीप जलाएं।
- गुड़-चावल, खीर या कोई मीठी वस्तु का भोग लगाएं।
विशेष मंत्र जाप और कथा श्रवण
पूजा के दौरान दो महत्वपूर्ण मंत्रों का जाप अवश्य करें:
- शिव मंत्र – “ॐ नमः शिवाय” का कम से कम 108 बार जाप करें।
- मंगल बीज मंत्र (Mangal Beej Mantra) – मंगल देव का आशीर्वाद पाने और कर्ज से मुक्ति के लिए इस मंत्र का जाप करें:
“ॐक्रांक्रींक्रौंसःभौमायनमः” - कथा – अंत में भौम प्रदोष व्रत की कथा (Vrat Katha) सुनें या पढ़ें।
हनुमान जी की पूजा (Special Addition)
चूँकि मंगलवार हनुमान जी (Lord Hanuman) का भी दिन है, अतः शिव पूजा के बाद हनुमान जी को गुड़ और चने का भोग लगाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इससे मंगल देव की कृपा और भी बढ़ जाती है।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें (Key Points to Remember)
- इस दिन मन, वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- दिनभर मन को सात्विक (Pure) रखें, किसी पर क्रोध न करें और विवाद से बचें।
- शाम को पूजा के बाद अपनी क्षमतानुसार किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं और लाल वस्त्र या गुड़ का दान करें।
- व्रत का पारण (Parana) अगले दिन सूर्योदय के बाद करें।
Found a Mistake or Error? Report it Now