Download HinduNidhi App
Shri Ganesh

श्री गजानन स्तोत्र अर्थ सहित

Gajanan Stotram Arth Sahit Hindi

Shri GaneshStotram (स्तोत्र संग्रह)हिन्दी
Share This

॥ श्री गजानन स्तोत्र पाठ विधि/लाभ ॥

  • जातक को सुबह स्नान करने के बाद भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ कर श्री गजानन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  • श्री गजानन स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
  • इससे मनुष्य को शांति मिलती है और जीवन से सभी प्रकार की बुराइयां दूर होती है।
  • इस स्तोत्र के पाठ से स्वास्थ्य लाभ के साथ धन की वृद्धि होती है।

॥ श्री गजानन स्तोत्र एवं अर्थ ॥

देवर्षि उवाचुः

विदेहरूपं भवबन्धहारं सदा स्वनिष्ठं स्वसुखप्रद तम्।
अमेयसांख्येन च लक्ष्यमीशं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: देवर्षि बोले- जो विदेह रूप से स्थित हैं, भवबंधन का नाश करने वाले हैं, सदा स्वानंद रूप में स्थित और आत्मानन्द प्रदान करने वाले हैं, उन अमेय सांख्य ज्ञान के लक्ष्य भूत भगवान गजानन का हम भक्ति भाव से भजन करते हैं।

मुनीन्द्रवन्यं विधिबोधहीनं सुबुद्धिदं बुद्धिधरं प्रशान्तम्।
विकारहीनं सकलाङ्गकं वै गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो मुनीश्वरों के लिए वंदनीय, विधि-बोध से रहित, उत्तम बुद्धि के दाता, बुद्धि धारी, प्रशांत चित्त, निर्विकार तथा सर्वाङ्गपूर्ण हैं, उन गजानन का हम भक्तिपूर्वक भजन करते हैं।

अमेयरूपं हृदि संस्थितं तं ब्रह्माहमेकं भ्रमनाशकारम्।
अनादिमध्यान्तमपाररूपं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जिनका स्वरूप अमेय है, जो हृदय में विराजमान हैं, ‘मैं एकमात्र अद्वितीय ब्रह्म हूं’ यह बोध जिनका स्वरूप है, जो भ्रम का नाश करने वाले हैं। जिनका आदि, मध्य और अंत नहीं है और जो अपार रूप हैं, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

जगत्प्रमाणं जगदीशमेवमगम्यमाद्यं जगदादिहीनम्।
अनात्मनां मोहप्रदं पुराणं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जिनका स्वरूप जगत को मापने वाला, अर्थात विश्वव्यापी है। इस प्रकार जो जगदीश्वर, अगम्य, सबके आदि तथा जगत आदि से हीन हैं और जो अज्ञानी पुरुषों को मोह में डालने वाले हैं, उन पुराण पुरुष गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

न पृथ्विरूपं न जलप्रकाशं न तेजसंस्थं न समीरसंस्थम्।
न खे गतं पञ्चविभूतिहीनं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो न तो पृथ्वीरूप न जल के रूप में प्रकाशित होते हैं, न तेज, वायु और आकाश में स्थित हैं। उन पंचविध विभूतियों से रहित गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

न विश्वगं तैजसगं न प्राज्ञं समष्टिव्यष्टिस्थमनन्तगं तम्।
गुणैर्विहीनं परमार्थभूतं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो न विश्व में हैं, न तमेज में है और न प्राज्ञ ही हैं। जो समष्टि और व्यष्टि दोनों में विराजमान हैं। उन अनन्तव्यापी निर्गुण एवं परमार्थ स्वरूप गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

गुणेशगं नैव च बिन्दुसंस्थं न देहिनं बोधमयं न दुष्टिम्।
सुयोगहीनं प्रवदन्ति तत्स्थं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो न तो गुणों के स्वामी में हैं, न बिन्दु में विराजमान हैं, न बोधमय देते हैं और दुण्डि ही हैं, जिन्हें ज्ञानीजन सुयोग हीन और योग में स्थित बताते हैं। उन गजानन का भक्तिभाव से भजन करते हैं।

अनागतं ग्रैवगतं गणेशं कथं तदाकारमयं वदामः।
तथापि सर्वं प्रतिदेहसंस्थं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो भविष्य हैं, गजग्रीवागत हैं, उन गणेश को हम आकार से युक्त कैसे कहें, तथापि जो सर्वरूप हैं और प्रत्येक शरीर में अन्तर्यामी विराजमान हैं, उन गजानन का हम भक्ति भाव से भजन करते हैं।

यदि त्वया नाथ घृतं न किंचित्तदा कथं सर्वमिदं भजामि।
अतो महात्मानमचिन्त्यमेवं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: नाथ! यदि आपने कुछ भी धारण नहीं किया है, तब हम कैसे इस संपूर्ण जगत की सेवा कर सकते हैं। अतः ऐसे महात्मा गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

सुसिद्धिदं भक्तजनस्य देवं सकामिकानामिह सौख्यदं तम्।
अकामिकानां भवबन्धहारं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो भक्तजनों को उत्तम सिद्धि देनेवाले देवता हैं, सकाम पुरुषों को यहां अभीष्ट सीख प्रदान करते हैं और निष्काम जनों के भव-बंधन को हर लेते हैं, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

सुरेन्द्रसेव्यं ह्यसुरैः सुसेव्यं समानभावेन विराजयन्तम्।
अनन्तबाहुं मुषकध्वज तं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो सुरेन्द्रों के सेव्य हैं और असुर भी जिनकी भली भांति सेवा करते हैं, जो समान भाव से सर्वत्र विराजमान हैं। जिनकी भुजाएं अनंत हैं और जिनके ध्वज में मूषक का चिह्न है, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

सदा सुखानन्दमयं जले च समुद्रजे इक्षुरसे निवासम्।
द्वन्द्वस्य यानेन च नाशरूपं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो सदा सुखानन्दमय हैं, समुद्र के जल में तथा ईक्षरस में निवास करते हैं और जो अपने यान द्वारा द्वन्द्व का नाश करने वाले हैं। उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

चतुःपदार्था विविद्यप्रकाशास्त एवं हस्ताः सचतुर्भुजं तम्।
अनाथनाथं च महोदरं वे गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: विविध रूप से प्रकाशित होने वाले जो चार पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) हैं, वे ही जिनके हाथ हैं और उन्हीं हाथों के कारण जो चतुर्भुज हैं, उन अनाथ नाथ लम्बोदर गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

महाखुमारुढमकालकालं विदेहयोगेन च लभ्यमानम्।
अमायिनं मायिकमोहदं तं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो विशाल मूषक पर आरूढ़ हैं, अकालकाल हैं, विदेहात्मक योग से जिनकी उपलब्धि होती है। जो मायावी नहीं हैं, अपितु मायावियों को मोह में डालने वाले हैं, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

रविस्वरूपं रविभासहीनं हरिस्वरूपं हरिबोधहीनम्।
शिवस्वरूपं शिवभासनाशं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो सूर्य स्वरूप होकर भी सूर्य के प्रकाश से रहित हैं। हरिस्वरूप होकर भी हरिबोध से हीन हैं तथा जो शिव स्वरूप होकर भी शिवप्रकाश के नाशक हैं, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

महेश्वरीस्थं च सुशक्तिहीनं प्रभुं परेशं परवन्द्यमेवम्।
अचालकं चालकबीजरूपं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: माहेश्वरी के साथ रहकर भी जो उत्तम शक्ति से हीन हैं। प्रभु, परमेश्वर और पर के लिए भी वन्दनीय हैं। अचालक होकर भी जो चालक बीजरूप हैं, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

शिवादिदेवैश्च खगैश्च वन्यं नरैर्लतावृक्षपशुप्रमुख्यैः।
चराचरैर्लोकविहीनमेकं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो शिवादि देवताओं, पक्षियों, मनुष्यों, लताओं, वृक्षों, प्रमुख पशुओं तथा चराचर प्राणियों के लिए वन्दनीय हैं। ऐसे होते हुए भी जो लोकरहित हैं, उन एक अद्वितीय गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

मनोवचोहीनतया सुसंस्थं निवृत्तिमात्रं ह्मजमव्ययं तम्।
तथापि देवं पुरसंस्थितं तं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: जो मन और वाणी की पहुंच से परे विद्यमान हैं, निवृत्तिमात्र जिनका स्वरूप है, जो अजन्मा और अविनाशी हैं तथापि जो नगर में स्थित देवता हैं, उन गजानन का हम भक्ति भाव से भजन करते हैं।

वयं सुधन्या गणपस्तवेन तथैव मर्त्यार्चनतस्तथैव।
गणेशरूपाय कृतास्त्वया तं गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: हम गणपति की स्तुति से परम धन्य हो गए। मर्त्यलोक की वस्तुओं से उनका अर्चन करके भी हम धन्य हैं। जिन्होंने हमें गणेश स्वरूप बना लिया है, उन गजानन का हम भक्तिभाव से भजन करते हैं।

गजास्यबीजं प्रवदन्ति वेदास्तदेव चिह्नेन च योगिनस्त्वाम्।
गच्छन्ति तेनैव गजानन त्वां गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: गजानन! आपके बीज-मंत्र को वेद बताते हैं, उसी बीजरूप चिह्न से योगी पुरुष आपको प्राप्त होते हैं। आप गजानन का हम भक्ति-भाव से भजन करते हैं।

पुराणवेदाः शिवविष्णुकाद्याः शुक्रादयो ये गणपस्तवे वै।
विकुण्ठिताः किं च वयं स्तुवीमो गजाननं भक्तियुतं भजामः॥

अर्थ: वेद, पुराण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा आदि तथा शुक्र आदि भी गणपति की स्तुति में कुंठित हो जाते हैं, फिर हम लोग उनकी क्या स्तुति कर सकते हैं? हम गजानन का केवल भक्तिभाव से भजन करते हैं।

।। इति श्री गजानन स्तोत्रम् ।।

Read in More Languages:

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App
श्री गजानन स्तोत्र अर्थ सहित PDF

Download श्री गजानन स्तोत्र अर्थ सहित PDF

श्री गजानन स्तोत्र अर्थ सहित PDF

Leave a Comment