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गुरु प्रदोष व्रत की संपूर्ण कथा और सरल विधि – जानें इस दिन ‘प्रदोष काल’ में शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं जो बरसेगी शिव-गुरु की कृपा।

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जय भोलेनाथ! भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है, और जब बात महादेव शिव की कृपा पाने की हो, तो प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) से उत्तम कोई तिथि नहीं। प्रदोष व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और यह वार के अनुसार अलग-अलग फल देता है। गुरुवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत ‘गुरु प्रदोष व्रत’ कहलाता है। यह व्रत आपको भगवान शिव (Lord Shiva) के साथ-साथ देवगुरु बृहस्पति (Brihaspati) की भी विशेष कृपा दिलाता है।

आइए, इस दिव्य और मंगलकारी व्रत की संपूर्ण कथा, पूजा विधि और वह विशेष सामग्री जानते हैं, जिसे ‘प्रदोष काल’ में शिवलिंग पर अर्पित करने से आपके जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता (Success) के द्वार खुल जाएंगे।

गुरु प्रदोष व्रत का महत्व – शिव और गुरु का अद्भुत आशीर्वाद

गुरु प्रदोष व्रत को संतान प्राप्ति, वैवाहिक सुख और शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए बहुत ही शुभ (Auspicious) माना गया है। इस दिन महादेव और देवगुरु बृहस्पति (Jupiter) दोनों की पूजा से भक्तों को दोहरी कृपा मिलती है।

  • संतान सुख – इस व्रत को करने से उन दंपत्तियों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं।
  • शिक्षा और ज्ञान – गुरु की कृपा से ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलती है।
  • विजय और ऐश्वर्य – यह व्रत शत्रुओं पर विजय दिलाता है और जीवन में ऐश्वर्य (Prosperity) की वृद्धि करता है।

गुरु प्रदोष व्रत की संपूर्ण और प्रामाणिक कथा

एक समय की बात है, एक नगर में एक बहुत ही दानी (Charitable) और धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बहुत ही सुशील और पतिव्रता थी। दोनों के जीवन में कोई कमी नहीं थी, सिवाय संतान सुख के। इसी नगर में एक गरीब और विधवा ब्राह्मणी भी रहती थी, जिसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था। उसका एक पुत्र था, जिसका नाम धर्मात्मा था।

एक दिन, दोनों ब्राह्मण परिवार के लोग और वह विधवा ब्राह्मणी एक दूसरे से मिले। दानी ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत का महत्व बताया और उसे यह व्रत करने की सलाह दी। विधवा ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक गुरु प्रदोष व्रत करना आरंभ कर दिया।

एक बार वृत्रासुर नामक दैत्य (Demon) ने देवताओं पर हमला कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया। देवराज इंद्र बहुत चिंतित हुए। गुरु बृहस्पति ने उन्हें गुरु प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। गुरु के वचनों को सुनकर इंद्र और सभी देवताओं ने विधि-विधान से गुरु प्रदोष व्रत किया, जिसके प्रभाव से वृत्रासुर पर विजय प्राप्त हुई और देवताओं को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।

उधर, विधवा ब्राह्मणी का पुत्र धर्मात्मा एक दिन खेलते हुए एक ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। ऋषि ने उसे अपने पास रखा और उसे प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) के बारे में बताया। बालक धर्मात्मा भी यह व्रत करने लगा।

एक दिन, उस बालक को अंशुमती नामक एक गंधर्व कन्या दिखाई दी, जो उस पर मोहित हो गई। बाद में, अंशुमती के माता-पिता को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि वे राजकुमार धर्मात्मा से अपनी पुत्री का विवाह कर दें।

गरीब विधवा ब्राह्मणी के पुत्र धर्मात्मा का विवाह एक गंधर्व कन्या से हुआ, और वह जल्द ही धनवान और सुखी हो गया। जिस ब्राह्मणी ने दुख और गरीबी में होते हुए भी प्रदोष व्रत किया, उसे भगवान शिव की कृपा से अखंड सौभाग्य (Eternal good fortune) और वैभव की प्राप्ति हुई।

इस प्रकार, गुरु प्रदोष व्रत के प्रभाव से इंद्र को विजय, देवताओं को राज्य और धर्मात्मा को ऐश्वर्य तथा संतान सुख प्राप्त हुआ।

गुरु प्रदोष व्रत की सरल पूजा विधि

गुरु प्रदोष व्रत में पूजा का सबसे महत्वपूर्ण समय ‘प्रदोष काल’ होता है, जो सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है।

  • स्नान आदि से निवृत्त होकर, भगवान शिव का स्मरण करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें कि आप पूरे दिन निराहार/फलाहार रहकर यह व्रत करेंगे।
  • पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय जी की प्रतिमा/तस्वीर स्थापित करें।
  • शिवलिंग पर गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से पंचामृत अभिषेक (Panchamrit Abhishek) करें।
  • शिवलिंग को स्वच्छ वस्त्र, मौली (पवित्र धागा) और जनेऊ (Sacred Thread) अर्पित करें।
  • ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘श्री उमा महेश्वराभ्याम नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • गुरु प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
  • अंत में कपूर से भगवान शिव की सपरिवार आरती करें।
  • मीठे का भोग लगाकर सभी में वितरित करें। व्रत का पारण (Vrat Paran) पूजा के बाद करें।

‘प्रदोष काल’ में शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं?

चूंकि यह गुरु प्रदोष (Guru Pradosh) है, इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ देवगुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने के लिए आपको पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

  • हल्दी युक्त जल – शिवलिंग पर हल्दी मिला जल या केवल जल चढ़ाने से गुरु बृहस्पति प्रसन्न होते हैं, जिससे ज्ञान और भाग्य (Luck) में वृद्धि होती है।
  • पीले फूल – महादेव को पीले रंग के फूल जैसे गेंदे के फूल (Marigold) अर्पित करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
  • चने की दाल – शिवलिंग पर या पास में एक मुट्ठी भीगी हुई चने की दाल (Soaked Gram Pulse) चढ़ाने से आर्थिक संकट दूर होते हैं और धन लाभ होता है।
  • बेलपत्र पर चंदन – 11 या 21 बेलपत्रों पर पीले चंदन से ‘ॐ’ लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • केले का भोग – भगवान को पीली मिठाई या केले का भोग लगाएं और बाद में इसे दान कर दें।
  • पीपल के नीचे दीप – शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इससे शिव-गुरु दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

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