जब हम ज्योतिष में कालसर्प योग की बात करते हैं, तो अक्सर लोग एक ही प्रकार के योग की कल्पना कर लेते हैं। हालाँकि, यह एक आम गलतफहमी है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, कालसर्प योग कुल 12 प्रकार का होता है, और प्रत्येक प्रकार का अपना विशिष्ट नाम, निर्माण की विधि और व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग प्रभाव होता है। इन प्रकारों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको अपनी कुंडली में मौजूद योग और उसके संभावित परिणामों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा। प्रत्येक प्रकार का कालसर्प योग राहु और केतु की कुंडली के विभिन्न भावों (घरों) में स्थिति के आधार पर बनता है। आइए, इन 12 प्रमुख प्रकारों को विस्तार से समझते हैं।
कालसर्प योग के 12 प्रमुख प्रकार
अनंत कालसर्प योग (Anant Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु लग्न (पहले भाव) में और केतु सप्तम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग व्यक्ति को शारीरिक कष्ट, मानसिक बेचैनी और वैवाहिक जीवन में समस्याओं का सामना करा सकता है। हालाँकि, यह व्यक्ति को दृढ़ निश्चयी और स्वतंत्र बनाता है। कई बार, यह उच्च पद और प्रसिद्धि भी दिला सकता है, खासकर राजनीति या सार्वजनिक जीवन में।
कुलिक कालसर्प योग (Kulik Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु द्वितीय भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग व्यक्ति को पारिवारिक विवादों, वाणी संबंधी समस्याओं (कठोर वाणी) और वित्तीय कठिनाइयों का अनुभव करा सकता है। पैतृक संपत्ति को लेकर भी विवाद हो सकते हैं। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ, विशेष रूप से मुख या दांतों से संबंधित, भी संभव हैं।
वासुकि कालसर्प योग (Vasuki Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु तृतीय भाव में और केतु नवम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग भाई-बहनों से संबंधों में उतार-चढ़ाव, पराक्रम में बाधा और भाग्य में अवरोध उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति को यात्राओं में परेशानी या पिता से संबंधों में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, यह व्यक्ति को साहसी और मेहनती भी बनाता है।
शंखपाल कालसर्प योग (Shankhpal Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु चतुर्थ भाव में और केतु दशम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग मातृ सुख में कमी, भूमि-भवन संबंधी समस्याओं और करियर में अस्थिरता पैदा कर सकता है। व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में पहचान बनाने में कठिनाई हो सकती है। माता के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं भी संभव हैं।
पद्म कालसर्प योग (Padma Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु पंचम भाव में और केतु एकादश भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग संतान संबंधी समस्याओं, शिक्षा में बाधा और प्रेम संबंधों में जटिलताएँ ला सकता है। आर्थिक लाभ में देरी या मित्रों से धोखा भी संभव है। हालांकि, व्यक्ति रचनात्मक और कलात्मक क्षेत्रों में सफल हो सकता है।
महापद्म कालसर्प योग (Mahapadma Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु षष्ठम भाव में और केतु द्वादश भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग शत्रु भय, ऋण संबंधी समस्याएँ और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ दे सकता है। व्यक्ति को कानूनी मुद्दों या अस्पताल में भर्ती होने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। यह योग व्यक्ति को बहुत मजबूत और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला भी बनाता है।
तक्षक कालसर्प योग (Takshak Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु सप्तम भाव में और केतु लग्न (पहले भाव) में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएँ, साझेदारी में धोखा और सामाजिक अपमान का कारण बन सकता है। व्यापार में उतार-चढ़ाव भी संभव है। हालांकि, यह व्यक्ति को सामाजिक रूप से सक्रिय और प्रभावशाली बना सकता है।
कार्कोट कालसर्प योग (Karkot Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु अष्टम भाव में और केतु द्वितीय भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग आकस्मिक दुर्घटनाएं, गुप्त रोग, वित्तीय नुकसान और विरासत संबंधी विवाद उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति को अपमान या निंदा का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, यह योग व्यक्ति को गूढ़ विषयों (जैसे ज्योतिष, तंत्र) में रुचि और गहन ज्ञान देता है।
शंखचूड़ कालसर्प योग (Shankhachood Kalsarp Yog):
- निर्माण: जब राहु नवम भाव में और केतु तृतीय भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग भाग्य में अवरोध, पिता से संबंधों में खटास और उच्च शिक्षा में बाधाएँ पैदा कर सकता है। व्यक्ति को धार्मिक मामलों में अरुचि या यात्राओं में परेशानी हो सकती है। हालांकि, यह व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत और दार्शनिक बनाता है।
घातक कालसर्प योग (Ghatak Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग करियर में अस्थिरता, नौकरी में परिवर्तन, और सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर चुनौतियाँ ला सकता है। व्यक्ति को माता के स्वास्थ्य या घर-परिवार से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, यह व्यक्ति को महत्वाकांक्षी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
विषधर कालसर्प योग (Vishdhar Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु एकादश भाव में और केतु पंचम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग आय में अनियमितता, बड़े भाई-बहनों से संबंधों में दूरी, और संतान संबंधी चिंताएँ पैदा कर सकता है। व्यक्ति को मित्रों से धोखा या निवेश में नुकसान हो सकता है। हालांकि, यह व्यक्ति को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान भी दिला सकता है, खासकर जीवन के उत्तरार्ध में।
शेषनाग कालसर्प योग (Sheshnag Kalsarp Yog)
- निर्माण: जब राहु द्वादश भाव में और केतु षष्ठम भाव में स्थित हो, और सभी ग्रह इनके बीच आ जाएं।
- प्रभाव: यह योग अनावश्यक खर्च, स्वास्थ्य संबंधी लंबी परेशानियाँ (गुप्त रोग), और कारावास या कानूनी मामलों का भय उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति को विदेश यात्रा में बाधा या नींद संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, यह योग व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत और परोपकारी बना सकता है।
महत्वपूर्ण बिंदु और विचार
- अपूर्ण कालसर्प योग – कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि यदि राहु और केतु के अक्ष में सभी ग्रह नहीं हैं, लेकिन अधिकांश ग्रह उनके भीतर हैं और एक या दो ग्रह बाहर हैं, तो यह “अपूर्ण कालसर्प योग” या “आंशिक कालसर्प योग” कहलाता है। इसके प्रभाव पूर्ण कालसर्प योग से कम होते हैं।
- ग्रहों की शक्ति – कालसर्प योग के प्रभाव कुंडली में अन्य ग्रहों की शक्ति, उनकी स्थिति और शुभ-अशुभ दृष्टि पर भी बहुत निर्भर करते हैं। यदि कुंडली में कोई राजयोग या अन्य शुभ योग बन रहा है, तो कालसर्प योग के नकारात्मक प्रभाव कम हो सकते हैं।
- कालसर्प योग हमेशा बुरा नहीं – यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कालसर्प योग हमेशा नकारात्मक नहीं होता। कई मामलों में, यह व्यक्ति को जीवन के उत्तरार्ध में महान सफलता, दृढ़ता और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है। यह योग व्यक्ति को संघर्षों से जूझने और अंततः विजयी होने की क्षमता देता है।
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