क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में पड़ने वाली भरणी नक्षत्र युक्त श्राद्ध तिथि का महत्व अन्य श्राद्धों से कहीं अधिक है? “महा भरणी श्राद्ध” सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि पितरों की आत्माओं को शांति और मोक्ष प्रदान करने का एक ऐसा दिव्य अवसर है, जिसे शास्त्रों में विशेष स्थान दिया गया है। 2025 में यह पावन तिथि कब पड़ रही है, इसके पीछे के रहस्य क्या हैं, और इसे कैसे सफलतापूर्वक संपन्न किया जाए, आइए विस्तार से जानते हैं।
महा भरणी श्राद्ध 2025 – तिथि और समय
2025 में महा भरणी श्राद्ध सितम्बर 11, 2025, बृहस्पतिवार को मनाया जाएगा।
यह तिथि भरणी नक्षत्र और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के संयोग से बनती है। इस विशेष संयोग के कारण ही इसे “महा भरणी” कहा जाता है, और इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
क्यों है महा भरणी श्राद्ध इतना महत्वपूर्ण?
भरणी नक्षत्र को यमराज का नक्षत्र माना जाता है, जो मृत्यु के देवता हैं। जब पितृ पक्ष में यह नक्षत्र चतुर्थी तिथि के साथ आता है, तो यह पितरों के लिए सीधे मोक्ष का मार्ग खोल देता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध कर्म पितरों को यमलोक की बाधाओं से मुक्ति दिलाकर सीधे पितृलोक में उच्च स्थान प्राप्त कराता है।
- मोक्ष का द्वार – भरणी नक्षत्र का संबंध मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से है। महा भरणी के दिन श्राद्ध करने से पितरों को इस चक्र से मुक्ति मिलकर मोक्ष प्राप्त होता है।
- अकाल मृत्यु से मुक्ति – जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनके लिए महा भरणी श्राद्ध विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। यह उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर उन्हें सद्गति दिलाता है।
- ऋण मुक्ति – यह माना जाता है कि हम अपने पूर्वजों के ऋण में होते हैं। महा भरणी श्राद्ध के माध्यम से हम इस पितृ ऋण से मुक्ति पा सकते हैं।
- समृद्धि और सुख – पितरों की संतुष्टि से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। उनके आशीर्वाद से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
महा भरणी श्राद्ध के नियम और विधि
महा भरणी श्राद्ध को विधि-विधान से करना अत्यंत आवश्यक है ताकि इसका पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
- श्राद्ध के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूरे दिन सात्विक रहें और क्रोध आदि से बचें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण करें। जल में काला तिल, जौ और कुशा मिलाकर अर्पित करें।
- आटे, जौ और चावल से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें। पिंड अर्पित करते समय “गोत्र” और “नाम” का उच्चारण अवश्य करें।
- कम से कम एक ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं। भोजन सात्विक और पितरों को प्रिय लगने वाला होना चाहिए। ब्राह्मण को दक्षिणा और वस्त्र भी भेंट करें।
- ब्राह्मण भोजन के बाद कौए, कुत्ते और गाय के लिए अलग से भोजन निकालें। यह भी पितरों को ही अर्पित करने के समान माना जाता है।
- अपनी सामर्थ्य अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या अन्य वस्तुएं दान करें।
- श्राद्ध कर्म के पश्चात पितरों से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
- अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध – यदि किसी परिजन की अकाल मृत्यु हुई हो, तो उनके लिए महा भरणी श्राद्ध अवश्य करें।
- एकल श्राद्ध – यदि किसी का कोई अन्य श्राद्ध करने वाला न हो, तो भी इस दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है।
- घर की दक्षिण दिशा – श्राद्ध कर्म हमेशा घर की दक्षिण दिशा में ही करें, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
- श्रद्धा और विश्वास – सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए।
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