चैत्र और शारदीय नवरात्रि (Navratri) का पर्व आदि शक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का महापर्व है। नौ दिनों तक चलने वाली यह साधना अष्टमी (Ashtami) या नवमी (Navami) तिथि पर कन्या पूजन (Kanya Pujan) के साथ पूर्ण मानी जाती है। विशेष रूप से महा नवमी के दिन, माँ सिद्धिदात्री की पूजा के उपरांत, छोटी कन्याओं को देवी का साक्षात स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि देवी को समर्पित इस पर्व में कन्या पूजन क्यों इतना अनिवार्य है? आइए, इस ब्लॉग में हम महा नवमी पर कन्या पूजन के पीछे का धार्मिक रहस्य, इसकी व्रत कथा, और संपूर्ण नियम जानते हैं।
कन्या पूजन का धार्मिक रहस्य – क्यों पूजी जाती हैं कन्याएं? (The Divine Secret)
सनातन धर्म में स्त्री शक्ति को ‘शक्ति’ (Shakti) और ‘देवी’ (Goddess) का रूप माना गया है। नवरात्रि के नौ दिनों में हम जिस आदिशक्ति दुर्गा की पूजा करते हैं, उन्हीं का अंश इन छोटी कन्याओं में माना जाता है।
- देवी का साक्षात स्वरूप – पौराणिक मान्यता है कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की कन्याएं मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों – कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, चंडिका, शांभवी, दुर्गा और सुभद्रा – का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसीलिए इन्हें बटुक (बालक भैरव) के साथ पूजने से नवदुर्गा और भैरवनाथ का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है।
- स्त्री शक्ति का सम्मान – कन्या पूजन स्त्री शक्ति (Feminine Power) के सम्मान का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि हमें कन्याओं और महिलाओं का आदर करना चाहिए।
- पूजा की पूर्णता – शास्त्रों के अनुसार, नवदुर्गा की पूजा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक कि उनके मानव रूप कन्याओं का आदर सत्कार न किया जाए। कन्याओं को भोजन और उपहार भेंट करने से मां दुर्गा अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
कन्या पूजन की पौराणिक व्रत कथा (The Legendary Story)
कन्या पूजन की परंपरा के पीछे कई कथाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा देवी वैष्णो माता और भैरवनाथ से जुड़ी है।
माना जाता है कि जब मां वैष्णो देवी छोटी कन्या के रूप में धरती पर आई थीं, तब उन्होंने काल भैरव को चेतावनी दी थी कि वे उनका पीछा न करें। लेकिन भैरव नहीं माने और माता का पीछा करते हुए त्रिकुटा पर्वत तक आ गए। इस दौरान मां ने नौ कन्याओं को भोजन कराया था और उन्हें अपना स्वरूप मानकर पूजित किया था। जब भैरव ने माता को पकड़ना चाहा, तब माता ने कन्या रूप को छोड़कर महाकाली (Mahakali) का रूप धारण किया और भैरवनाथ का संहार कर दिया।
इसलिए, इस दिन कन्याओं के साथ एक बालक (लंगूर/बटुक) को भी भोजन कराने की परंपरा है, जिसे भैरवनाथ का प्रतीक माना जाता है। इस कथा का सार यह है कि देवी हर आयु की कन्याओं में वास करती हैं और उनका सम्मान करना ही देवी की सच्ची आराधना है।
कन्या पूजन के महत्वपूर्ण नियम (Kanya Pujan Important Rules)
- कन्याओं की संख्या – कम से कम 9 कन्याएं (नवदुर्गा का प्रतीक) और 1 बालक (बटुक भैरव का प्रतीक) होना उत्तम माना जाता है। यदि 9 कन्याएं न हों, तो अपनी सामर्थ्य अनुसार 3, 5 या 7 कन्याओं को भी भोजन कराया जा सकता है।
- कन्याओं की आयु – कन्याओं की आयु 2 वर्ष से 10 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
- प्रसाद – कन्या पूजन का प्रसाद सात्विक (Sattvic) होना चाहिए। इसमें मुख्य रूप से हलवा, पूरी और काले चने का भोग बनाया जाता है।
- स्वच्छता – पूजन से पहले घर की साफ-सफाई और स्नान करना अनिवार्य है।
कन्या पूजन की संपूर्ण विधि (Complete Ritual of Kanya Pujan)
- कन्याओं को उनके घर जाकर या आदर सहित अपने घर पर आमंत्रित करें।
- घर में उनके आगमन पर, स्वच्छ जल से या दूध मिले पानी से उनके चरण धोएं। यह क्रिया देवी के प्रति समर्पण (Devotion) को दर्शाती है।
- सभी कन्याओं और बालक को साफ और आरामदायक आसन (Pattas) पर बिठाएं।
- उन्हें कुमकुम का तिलक लगाएं, मौली (रक्षा सूत्र) बांधें और सामर्थ्य अनुसार कन्याओं को चुनरी ओढ़ाएं।
- मां दुर्गा को भोग लगाने के बाद वही प्रसाद कन्याओं को परोसें। भोजन प्रेम और आदर के साथ खिलाना चाहिए।
- भोजन के बाद उनकी आरती करें। उन्हें फल, दक्षिणा (पैसे) और कोई उपहार (Gift) भेंट करें। यह ध्यान रखें कि सभी कन्याओं को एक समान उपहार दिया जाए।
- अंत में, उनके चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लें। कन्याओं को विदा करते समय सम्मानपूर्वक विदा करें।
कन्याओं की आयु और उनका महत्व (Age and Significance)
शास्त्रों में हर आयु की कन्या को देवी के विशेष स्वरूप का प्रतीक माना गया है:
- 2 वर्ष की कन्या – कुमारी (दुःख और दरिद्रता का नाश।)
- 3 वर्ष की कन्या – त्रिमूर्ति (धन-धान्य और परिवार का कल्याण।)
- 4 वर्ष की कन्या – कल्याणी (सुख-समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति।)
- 5 वर्ष की कन्या – रोहिणी (रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ।)
- 6 वर्ष की कन्या – कालिका (शत्रुओं पर विजय और सफलता।)
- 7 वर्ष की कन्या – चंडिका (धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति।)
- 8 वर्ष की कन्या – शांभवी (सर्व सिद्धि की प्राप्ति।)
- 9 वर्ष की कन्या – दुर्गा (सभी कष्टों का नाश और मोक्ष।)
- 10 वर्ष की कन्या – सुभद्रा (हर कार्य में शुभता (Auspiciousness) की प्राप्ति।)
Found a Mistake or Error? Report it Now

