महाभारतम उद्योग पर्व महाभारत के प्रमुख अठारह पर्वों में से एक है। यह महाकाव्य के तीसरे पर्व के रूप में आता है और इसमें कुल 10 उपपर्व एवं 199 अध्याय हैं। यह पर्व धर्म, राजनीति, कूटनीति, और युद्ध की तैयारी के विषय में गहन चर्चा करता है। इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं, जिन्होंने महाभारत की संपूर्ण रचना की।
उद्योग पर्व में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की अनिवार्यता को दर्शाया गया है। यह पर्व उस समय की घटनाओं का वर्णन करता है जब युद्ध से बचने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए, लेकिन अंततः धर्म और अधर्म के टकराव के कारण युद्ध अपरिहार्य हो गया।
महाभारतम उद्योग पर्व मुख्य विषय और घटनाएँ
- श्रीकृष्ण ने शांति के लिए पांडवों की ओर से केवल पाँच गांवों की मांग की, लेकिन दुर्योधन ने इसे भी ठुकरा दिया। इस घटना ने महाभारत युद्ध को अपरिहार्य बना दिया।
- इस पर्व में पांडव और कौरव दोनों पक्षों द्वारा अपने-अपने सेनाओं की तैयारी और रणनीतियों का वर्णन किया गया है।
- कौरव सभा में श्रीकृष्ण ने अपना विराट स्वरूप प्रकट किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि धर्म के पक्ष में विजय निश्चित है।
- उद्योग पर्व मुख्य रूप से धर्म और अधर्म के संघर्ष को रेखांकित करता है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे अधर्म की जड़ें गहरी होने के बावजूद धर्म की विजय सुनिश्चित होती है।
- इस पर्व में भगवान श्रीकृष्ण, जो पांडवों के संरक्षक और मार्गदर्शक थे, कौरवों के दरबार में शांति का प्रस्ताव लेकर जाते हैं। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को युद्ध टालने के लिए कई सुझाव दिए, लेकिन दुर्योधन की जिद और अहंकार ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया।
महाभारतम उद्योग पर्व पुस्तक की विशेषताएँ
- यह पर्व जीवन के हर पहलू में धर्म, कर्तव्य, और न्याय की महत्ता को समझाने वाला है।
- इसमें राजनीति और कूटनीति के गूढ़ पाठ निहित हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
- युद्ध की तैयारी और उससे जुड़े मानसिक द्वंद्व का गहन वर्णन किया गया है।