मार्कण्डेय पुराण (Markandey Puran) सभी पुराणों में आकार में सबसे छोटा है। इस पुराण में 137 अध्याय और 9000 श्लोक मिलते है। 1 से 42 वें अध्याय तक के वक्ता महर्षि जैमिनि है, उसको सुनने वाले धर्म पक्षी हैं। 43 वें से 90 अध्याय के वक्ता महर्षि मार्कण्डेय ऋषि है, उसको सुनने वाले क्रप्टुकि हैं।
इस पुराण में मार्कण्डेय ऋषि ने मनुष्य के कल्याण के लिए नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एव भौतिक विषयो का भली–भाँति ज्ञात किया गया है। मार्कण्डेय ऋषि ने इस पुराण में भारतवर्ष का प्रकृति से उत्पन्न होने वाले वैभव और खूबसूरती प्रकट कि गई है।
मार्कण्डेय पुराण में पापनासनी पुण्यकारी चंडी देवी का माहत्म्य का वर्णन विस्तारपूर्वक कहा गया है। इस पुराण को शाक्त ग्रंथ भी कहा जाता है। मार्कण्डेय पुराण में ही दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण वर्णन मिलता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ हिन्दू धर्म के सभी लोग श्रद्धा पूर्वक करते है।
मार्कण्डेय पुराण आख्यान, उपाख्यान और कथाओ से भरा पड़ा हुआ है। इस पुराण में सबसे अधिक करुण और मार्गिक प्रसंग राजा हरिचन्द्र का आख्यान है। एक वचन के पूरा करने के लिए हरिचन्द्र ने अपना राज्य, एश्वर्य और अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेच दिया था। स्वयं राज हरिचन्द्र श्मसान में चाण्डाल का काम करने लगे सिर्फ इसलिए की ऋषि विश्वामित्र की दक्षिणा पूरी करनी थी।