Download HinduNidhi App
Misc

संतान सप्तमी व्रत की कथा

Santan Saptami Vrat Katha Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
Share This

|| संतान सप्तमी व्रत के लिए नियम ||

  • संतान की कामना से जो लोग संतान सप्तमी का व्रत रखते हैं उनके लिए नियम है कि इस व्रत को दोपहर तक कर लें।
  • शिव पार्वती की प्रतिमा को सामने चौकी पर रखकर उनकी पूजा करें। पूजा में नारियय, सुपारी और धूप दीप अर्पित करें।
  • माताएं संतान की लंबी आयु और उनकी रक्षा के लिए कामना करते हुए भगवान शिव को कलावा लपेटें।
  • कलावा को बाद में संतान की कलाई में लपेट दें।

|| संतान सप्तमी व्रत की कथा ||

संतान सप्तमी व्रत संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत है। इस व्रत से संतान को आरोग्य और दीघायु की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार पांडु पुत्र युधिष्ठिर को भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के महत्व को बताते हुए कहा था कि इस दिन व्रत करके सूर्य देव और लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से संतान की प्रप्ति होती है।

भगवान ने बताया कि इनकी माता देवकी के पुत्रों को कंस जन्म लेते ही मार देता था। लोमश ऋषि ने माता देवकी को तब संतान सप्तमी व्रत के बारे में बताया। माता ने इस व्रत को रखा और लोमश ऋषि के बताए विधान के अनुसार माता ने इस व्रत के नियम का पालन किया इससे मेरा जन्म हुआ और मैंने कंस के अत्याचार से धरती को मुक्ति दिलाई।

संतान सप्तमी व्रत कथा में राजा नहुष की पत्नी की भी कथा प्रसिद्ध है। एक समय अयोध्या में बड़े प्रतापी नहुष नामक राजा राज किया करते थे। राजा की पत्नी का नाम चंद्रमुखी था जिनकी एक प्रिय सहेली थी रूपमती। एक बार रानी चंद्रमुखी अपनी सहेली के साथ सरयू तट पर स्नान करने गयीं तो वहां उन्होंने देखा कि बहुत सी महिलाएं संतान सप्तमी व्रत का पूजन कर रही थीं।

रानी अपनी सहेली के साथ वहां बैठकर संतान सप्तमी व्रत पूजन देखने लगीं। उन्होंने भी निश्चय किया कि संतान प्राप्ति के लिए वह भी इस व्रत को रखा करेंगी। लेकिन समय अंतराल में वह भूल गईं। समय का चक्र चलता रहा और रानी और उनकी सहेली देह त्याग कर परलोक चली गई। फिर इनका पशु समेत अनेक योनियों में जन्म हुआ और फिर उन्होंने अपने कर्मफल से मनुष्य शरीर प्राप्त किया।

रानी चंद्रमुखी ईश्वरी नामक राजकन्या हुई और उनकी सहेली रूपमती ब्राह्मण की कन्या हुई। इस जन्म में रूपमती को अपने पूर्वजन्म की सभी बातें याद थी। उसने संतान सप्तमी का व्रत किया जिससे उसे 8 संतान प्राप्त हुई। लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत को नहीं किया जिससे वह इस जन्म में भी निःसंतान थी।

रूमती के पुत्रों को देखकर ईश्वरी को जलन होती थी और उसने कई बार उन्हें मारने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रही। बाद में उसने अपनी गलती मान ली और रूपमती से क्षमा मांगी। रूपमती ने ईश्वरी को क्षमा कर दिया और संतान सप्तमी व्रत करने के लिए कहा। इस व्रथ से ईश्वरी को भी संतान सुख की प्राप्ति हुई।

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App

Download संतान सप्तमी व्रत की कथा PDF

संतान सप्तमी व्रत की कथा PDF

Leave a Comment