श्रीदुर्गासप्तशती, जिसे चंडी पाठ भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। यह ग्रंथ देवी दुर्गा की महिमा और उनकी शक्तियों का वर्णन करता है। श्रीदुर्गासप्तशती मुख्य रूप से 700 श्लोकों का संग्रह है, जो मार्कंडेय पुराण का एक हिस्सा है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है, बल्कि यह भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा भी देता है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार, जिन्होंने इस ग्रंथ को सरल और सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया, भारतीय धार्मिक साहित्य के एक महान लेखक और संपादक रहे हैं। उनकी शैली और भाषा ने इस ग्रंथ को आम जनमानस के लिए सुलभ बना दिया।
हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) भारत के प्रमुख धार्मिक और साहित्यिक व्यक्तित्वों में से एक थे। वे गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापक संपादकों में से एक थे और उन्होंने आध्यात्मिक ग्रंथों के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी लेखनी सरल, प्रभावशाली और भावनात्मक थी, जो सीधे पाठकों के हृदय को छू जाती थी।
हनुमान प्रसाद पोद्दार ने श्रीदुर्गासप्तशती का अनुवाद और संपादन इस प्रकार किया कि इसे पढ़ना और समझना आसान हो गया। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से देवी दुर्गा की महिमा को हर घर तक पहुंचाने का प्रयास किया।
श्रीदुर्गासप्तशती का महत्व
श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है। यह ग्रंथ त्रिपुर सुंदरी, महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस ग्रंथ को पढ़ने से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और जीवन में आने वाली बाधाओं को पार करने की शक्ति प्राप्त होती है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा संपादित संस्करण में प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
- संस्कृत श्लोकों का सरल हिंदी अनुवाद।
- श्लोकों के अर्थ और उनके महत्व को स्पष्ट किया गया है।
- पाठक को आत्मिक शक्ति और जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने में सहायक।
श्रीदुर्गासप्तशती का विशेष उपयोग
- इस ग्रंथ का पाठ जीवन की कठिन परिस्थितियों में मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- नवरात्रि के नौ दिनों में इसका पाठ देवी के आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- इसे पढ़ने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और व्यक्ति को आत्मविश्वास मिलता है।