प्रत्येक वर्ष पौष माह (Paush Month) के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे मोक्षदा एकादशी और दक्षिण भारत में मुक्कोटी एकादशी भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस एकादशी का महत्व (Significance) सबसे अधिक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने वाले भक्तों के लिए सीधे भगवान विष्णु के निवास स्थान ‘वैकुण्ठ’ के द्वार खुल जाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं, इस पवित्र तिथि का संबंध सीधे भगवान विष्णु से है? पद्म पुराण में वर्णित एक अद्भुत कथा बताती है कि कैसे श्री हरि के शरीर से एक शक्ति (Divine Power) ने जन्म लिया, जिसे ‘एकादशी देवी’ कहा गया। आइए, जानते हैं यह रोचक और प्रेरणादायक कहानी।
कथा – जब भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुईं एकादशी देवी
यह कथा उस समय की है, जब दैत्यों का राजा मुर (Mura) अपनी शक्तियों के अहंकार में चूर था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वह देवताओं (Devas) और मनुष्यों को भयानक रूप से परेशान कर रहा था। उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर, सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे।
असुर मुर का बढ़ता अत्याचार
असुर मुर अत्यंत बलशाली था। उसने देवलोक पर हमला कर दिया और सभी देवताओं को वहाँ से निष्कासित कर दिया। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, तब श्री हरि (Lord Vishnu) ने स्वयं मुर से युद्ध करने का निर्णय लिया।
भगवान विष्णु का विश्राम और मुर का षड्यंत्र
भगवान विष्णु और असुर मुर के बीच भयानक युद्ध चला, जो हज़ार वर्षों तक जारी रहा। अंततः युद्ध से थककर, श्री विष्णु बदरिकाश्रम की एक सुंदर और रहस्यमय गुफा में विश्राम करने के लिए चले गए। इस गुफा का नाम सिंहावती था।
मुर को जब इस बात का पता चला, तो वह भगवान को सोया हुआ देखकर, उन्हें मारने की योजना बनाने लगा। उसने गुफा में प्रवेश किया और भगवान विष्णु पर हमला करने की तैयारी की।
एकादशी देवी का अद्भुत जन्म
जैसे ही मुर ने भगवान विष्णु को मारने के लिए शस्त्र उठाया, तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई! श्री हरि के शरीर से एक दिव्य, तेजस्वी और अत्यंत सुंदर नारी शक्ति प्रकट हुईं।
उस देवी ने तुरंत असुर मुर को ललकारा और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। वह शक्ति इतनी प्रचंड थी कि उसने अपनी एक ही हुंकार से असुर मुर को भयभीत कर दिया और देखते ही देखते अपनी शक्ति से उसे भस्म कर डाला।
वरदान और ‘एकादशी’ नाम की प्राप्ति
जब भगवान विष्णु निद्रा से जागे, तो उन्होंने देखा कि मुर भस्म हो चुका है और उनके सामने एक दिव्य देवी खड़ी हैं। उन्होंने देवी से पूछा कि वह कौन हैं और यह पराक्रम (Bravery) उन्होंने कैसे किया?
तब देवी ने बताया कि वह उन्हीं के शरीर से प्रकट हुई हैं, और उन्होंने ही मुर का वध किया है। तब श्री विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी को आशीर्वाद देते हुए कहा:
“देवी! तुमने मेरे एकादश (ग्यारहवें) दिन विश्राम करते हुए जन्म लिया है, इसलिए आज से तुम्हारा नाम एकादशी होगा। तुमने मेरे शरीर से उत्पन्न होकर मेरा सहयोग किया है। अब तुम मुझसे कोई भी वरदान (Boon) मांग सकती हो।”
देवी एकादशी ने वरदान माँगा: “हे प्रभु! जो भी मनुष्य आज के दिन मेरा व्रत रखे और आपकी सच्चे मन से पूजा करे, उसे आपके वैकुण्ठ लोक में स्थान मिले और वह जन्म-मरण के चक्र (Cycle of Birth and Death) से मुक्त हो जाए।”
भगवान विष्णु ने यह वरदान सहर्ष स्वीकार किया और कहा कि जो भी भक्त एकादशी का व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष (Moksha) प्राप्त करेगा और मेरे धाम को प्राप्त होगा।
वैकुण्ठ एकादशी का महत्व (Significance) और अनुष्ठान
- धार्मिक मान्यता है कि वैकुण्ठ एकादशी के दिन ‘वैकुण्ठ द्वार’ (Gate of Vaikuntha) या ‘स्वर्ग द्वार’ खुला रहता है। जो भक्त इस दिन मंदिर के उत्तरी द्वार (Northern Gate) से भगवान के दर्शन करते हैं, उन्हें सीधे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।
- कहा जाता है कि वैकुण्ठ एकादशी का व्रत करने से वर्षभर की बाकी 23 एकादशियों का फल भी प्राप्त हो जाता है।
- एकादशी देवी के जन्म से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, मुर नामक असुर ने चावल के दानों में आश्रय लिया था, इसलिए इस दिन चावल (Rice) खाना वर्जित माना जाता है।
- इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। भक्त निर्जला या फलाहार व्रत रखते हैं, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हैं और रातभर जागरण कर कीर्तन (Kirtan) करते हैं।
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