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आंवला नवमी की व्रत कथा व पूजा विधि

Amla Navami Vrat Katha Puja Vidhi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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।। आंवला नवमी की पूजा विधि ।।

  • अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है।
  • वृक्ष की हल्दी कुमकुम आदि से पूजा करके उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित करें।
  • इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है।
  • पूजा के बाद इसकी कथा पढ़ी और सुनी जाती है।
  • पूजा खत्म होने के बाद परिवार और मित्रों आदि के साथ वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किए जाने का महत्व है।

।। अक्षय (आंवला) नवमी की व्रत कथा ।।

अक्षय नवमी के संबंध में कथा है कि दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी के अतीव सौंदर्य पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। मुकुंद देव ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

इस पर किशोरी ने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी। परंतु मुकुंद देव अपने प्रस्ताव पर अडिग थे। उन्होंने अपने आराध्य देव सूर्य और किशोरी ने अपने आराध्य भगवान शंकर की आराधना की। भगवान शंकर ने किशोरी से भी सूर्य की आराधना करने को कहा।

किशोरी गंगा तट पर सूर्य आराधना करने लगी। तभी विलोपी नामक दैत्य किशोरी पर झपटा तो सूर्य देव ने उसे तत्काल भस्म कर दिया। सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो।

दोनों ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गईं, तो आकाश से बिजली मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया। इस कहानी के कारण आंवले के वृक्ष की पूजा होने लगी। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। आयुर्वेद में इसके अनेक गुण बताए गए हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण व प्रकृति का सम्मान करना भी है।

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