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वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 5 गलतियाँ, वरना अधूरा रह जाएगा व्रत का फल।

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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, लेकिन जब बात ‘पुत्रदा एकादशी’ की आती है, तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। साल में दो बार पुत्रदा एकादशी आती है – एक श्रावण मास में और दूसरी पौष मास में।

वर्ष 2025 में पौष मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जा रहा है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि संतान के जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं। लेकिन, शास्त्र कहते हैं कि यदि व्रत के दौरान कुछ विशेष गलतियाँ हो जाएं, तो पुण्य फल मिलने के बजाय दोष लग सकता है।

क्या है वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी?

पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ कहा जाता है। ‘पुत्रदा’ का अर्थ है – संतान देने वाली।

जब एकादशी तिथि दो दिनों तक व्याप्त होती है, तो दूसरे दिन वाली एकादशी को ‘वैष्णव एकादशी’ कहा जाता है। यह तिथि विशेष रूप से सन्यासियों, वैष्णव मत को मानने वालों और मोक्ष की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। भगवान विष्णु (श्री हरि) को समर्पित यह व्रत मानसिक शांति और वंश वृद्धि के लिए अचूक माना गया है।

भूलकर भी न करें ये 5 गलतियाँ

शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत के नियम बहुत कड़े होते हैं। यदि आप इस दिन व्रत रख रहे हैं या पूजा कर रहे हैं, तो इन 5 गलतियों से बचें:

  • चावल का सेवन (सबसे बड़ी भूल) – धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, चावल का संबंध ‘महर्षि मेधा’ के शरीर के अंश से है, इसलिए इस दिन चावल खाना जीव हत्या के समान माना गया है। चाहे आप व्रत रख रहे हों या नहीं, एकादशी के दिन घर में चावल नहीं बनाना चाहिए।
  • तुलसी दल तोड़ना – भगवान विष्णु की पूजा बिना तुलसी के अधूरी है, लेकिन एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ना महापाप माना जाता है। आपको पूजा के लिए तुलसी के पत्ते एक दिन पहले (दशमी तिथि को) ही तोड़कर रख लेने चाहिए। इस दिन तुलसी में जल अर्पित करें और दीपक जलाएं, पर उन्हें स्पर्श न करें।
  • तामसिक भोजन और नशा – वैष्णव एकादशी पूरी तरह सात्विकता का प्रतीक है। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन घर के किसी भी सदस्य को नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से घर की बरकत रुक जाती है और व्रत का फल निष्फल हो जाता है।
  • क्रोध और कठोर वचन – व्रत केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन का भी होता है। एकादशी के दिन किसी को अपशब्द कहना, झूठ बोलना या गुस्सा करना वर्जित है। ब्रह्मचर्य का पालन करें और अपना समय भगवान के नाम जप (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) में बिताएं।
  • दशमी और द्वादशी के नियमों की अनदेखी – एकादशी का व्रत केवल एक दिन का नहीं, बल्कि तीन दिनों का अनुशासन है। दशमी की रात को सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। साथ ही, द्वादशी के दिन शुभ मुहूर्त में पारण (व्रत खोलना) करना अनिवार्य है। समय बीत जाने के बाद पारण करने से व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।

वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु के सामने हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
  • श्री हरि की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं। पीले फूल, फल और धूप-दीप अर्पित करें।
  • पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा जरूर सुनें या पढ़ें।
  • इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को पीले वस्त्र या अनाज का दान करना विशेष फलदायी होता है।

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