वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। यह व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने और व्रत कथा सुनने से भक्तों के संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
|| वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF ||
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है, पृथ्वी पर बहुत भयंकर अकाल पड़ा। चारों ओर पानी की कमी और भुखमरी फैल गई। सभी जीव-जंतु और मनुष्य त्राहि-त्राहि करने लगे। देवताओं ने भी इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की।
भगवान शिव ने सभी देवताओं के साथ मिलकर भगवान गणेश का आह्वान किया। गणेश जी प्रकट हुए और देवताओं ने उन्हें अपनी समस्या बताई। भगवान गणेश ने सभी को आश्वासन दिया कि वे इस संकट से अवश्य मुक्ति दिलाएंगे।
गणेश जी ने वक्रतुंड स्वरूप धारण किया। उनके इस स्वरूप में उनका मुख गज के समान था और उनका पेट बड़ा था। उन्होंने अपने मुख से अकाल को समाप्त करने के लिए जल बरसाया और अपने बड़े पेट में सभी संकटों को समाहित कर लिया। इस प्रकार, उन्होंने पृथ्वी पर से अकाल और संकट को दूर किया।
इसके बाद, गणेश जी ने सभी देवताओं और मनुष्यों को आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी व्यक्ति हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मेरा वक्रतुंड स्वरूप का स्मरण करेगा, व्रत रखेगा और इस कथा को सुनेगा, उसके सभी संकट दूर होंगे और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। उसके जीवन में कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं आएगी और सुख-समृद्धि बनी रहेगी।
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत दुखों का नाश करने वाला, बाधाओं को दूर करने वाला और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। जो भक्त सच्चे मन से यह व्रत करते हैं, उन्हें रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ की प्राप्ति होती है।
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