|| विजयादशमी की कथा (दशहरा व्रत कथा) ||
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है, और इसके नाम के पीछे कई पौराणिक और ज्योतिषीय कारण बताए गए हैं। इस दिन को ‘विजयादशमी’ कहे जाने का एक प्रमुख कारण देवी भगवती के ‘विजया’ नाम से जुड़ा हुआ है।
इसके साथ ही, इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए भी इसे विजयादशमी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय के समय ‘विजय’ नामक विशेष काल होता है, जिसे कार्य सिद्धि का समय माना जाता है, इसलिए भी इस दिन को विजयादशमी कहा जाता है। इस दिन अपराजिता पूजन और शमी पूजन करने की भी परंपरा है।
विजयादशमी खासतौर पर क्षत्रियों का प्रमुख पर्व माना जाता है, इस दिन वे अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। ब्राह्मण वर्ग इस दिन सरस्वती पूजन करता है, जबकि व्यापारी वर्ग अपने बही-खातों का पूजन करता है।
विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है। यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इसे अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है। विजयादशमी से जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ हैं – एक भगवान श्रीराम की और दूसरी माँ दुर्गा की।
भगवान श्रीराम और रावण की कथा
रामायण के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास हुआ था। उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी वन गए थे। वनवास के दौरान, लंका के राजा रावण ने छलपूर्वक माता सीता का हरण कर लिया। जब भगवान राम ने यह देखा, तो उन्होंने रावण से युद्ध करने का निर्णय लिया।
रावण एक महान विद्वान और पराक्रमी योद्धा था। उसे कई वरदान प्राप्त थे, और वह अपराजेय माना जाता था। राम ने वानर सेना, जिसमें हनुमान, सुग्रीव, जाम्बवंत आदि शामिल थे, की मदद से रावण से युद्ध किया। यह युद्ध कई दिनों तक चला। अंततः राम ने रावण का वध दशमी के दिन किया और सीता को मुक्त कराया। इस दिन को “विजयादशमी” के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
माँ दुर्गा और महिषासुर की कथा
दूसरी कथा माँ दुर्गा और महिषासुर से जुड़ी है। महिषासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। महिषासुर ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक फैलाया और किसी भी देवता या योद्धा से नहीं हार रहा था। देवताओं ने महिषासुर के आतंक से मुक्त होने के लिए त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) से सहायता मांगी।
त्रिमूर्ति ने अपनी शक्तियों से माँ दुर्गा की उत्पत्ति की। माँ दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध किया। महिषासुर बार-बार रूप बदलता, लेकिन देवी दुर्गा ने अंत में दशमी के दिन उसका वध कर दिया। इसलिए, विजयादशमी को माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है।
विजयादशमी का महत्व
विजयादशमी न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि जीवन में किसी भी प्रकार की बुराई का अंत अवश्य होता है और अच्छाई की जीत होती है।
यह कर्म और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। विजयादशमी पर रावण दहन की परंपरा भी है, जिसमें लोग रावण के पुतले को जलाकर यह संदेश देते हैं कि अहंकार, लोभ, और अन्य बुराइयों का अंत अवश्य होता है।
इस दिन लोग नए कार्यों की शुरुआत भी करते हैं, जो शुभ मानी जाती है। कई स्थानों पर शस्त्र पूजन और विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है। विजयादशमी एक उत्सव है जो यह संदेश देता है कि जब हम सच्चाई, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हैं, तो विजय अवश्य होती है।
एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से विजयादशमी के महत्व के बारे में पूछा। शिवजी ने बताया कि आश्विन शुक्ल दशमी को जब तारा उदय होता है, तब ‘विजय’ नामक शुभ काल आता है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है।
अगर इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। भगवान राम ने इसी विजय काल में रावण पर विजय प्राप्त की थी, और अर्जुन ने भी शमी वृक्ष से अपना गांडीव उठाकर शत्रुओं पर विजय पाई थी।
दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर 12 वर्षों का वनवास और तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त रखी थी। तेरहवें वर्ष के दौरान अर्जुन ने अपना गांडीव शमी वृक्ष पर छिपा दिया था और बृहन्नला के रूप में राजा विराट की सेवा की थी।
जब गौ रक्षा के लिए अर्जुन को युद्ध करना पड़ा, तो उन्होंने शमी वृक्ष से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। इसी तरह, रामचंद्रजी ने भी लंका पर चढ़ाई करने के समय शमी वृक्ष के पास विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसलिए, विजयादशमी के दिन शाम के समय विजय काल में शमी पूजन किया जाता है।
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