विवेकचूडामणि आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रमुख दार्शनिक ग्रंथ है, जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों पर आधारित है। इस पुस्तक का नाम “विवेकचूडामणि” का अर्थ है “विवेक (विवेकशीलता) का सर्वोच्च आभूषण,” और यह आत्मज्ञान की प्राप्ति के मार्ग में विवेकशीलता के महत्व को रेखांकित करता है।
विवेकचूडामणि पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ
- अद्वैत वेदांत का दर्शन: विवेकचूडामणि में अद्वैत वेदांत के मूल सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन है। इसमें आत्मा और परमात्मा की एकता, माया का सिद्धांत, और ब्रह्म के स्वरूप की व्याख्या की गई है। यह ग्रंथ यह बताता है कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, और माया के कारण जीवात्मा इस सत्य को नहीं समझ पाता।
- विवेक और वैराग्य का महत्व: पुस्तक में विवेक (सही और गलत का ज्ञान) और वैराग्य (सांसारिक वस्तुओं से आसक्ति का त्याग) को आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक बताया गया है। इसमें कहा गया है कि विवेक और वैराग्य के बिना आत्मज्ञान संभव नहीं है।
- गुरु-शिष्य संवाद: विवेकचूडामणि एक गुरु-शिष्य संवाद के रूप में लिखा गया है, जहाँ गुरु शिष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। गुरु के माध्यम से शिष्य को सत्य का ज्ञान प्राप्त होता है, और इस पुस्तक में गुरु की महिमा का भी वर्णन किया गया है।
- ज्ञान की साधना: इस ग्रंथ में ज्ञान की साधना (ज्ञान योग) के विभिन्न चरणों का वर्णन किया गया है, जैसे कि श्रवण (सुनना), मनन (विचार करना), और निदिध्यासन (ध्यान करना)। यह पुस्तक बताती है कि इन तीनों चरणों के माध्यम से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
- मुक्ति का मार्ग: विवेकचूडामणि में बताया गया है कि मोक्ष या मुक्ति का मार्ग आत्मज्ञान से होकर ही जाता है। माया के प्रभाव से मुक्त होकर, आत्मा को ब्रह्म से एकरूपता का अनुभव करना ही मुक्ति है।