|| अथ तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् ||
जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत को धारण करने वाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेजःस्वरुप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रा देवी की भगवान ब्रह्मा स्तुति करने लगे
ब्रह्मा जी ने कहा – देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्ही स्वधा और तुम्ही वषट्कार हो। स्वर
भी तुम्हारे ही स्वरुप हैं। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार,
उकार, मकार – इन तीन मात्राओं के रूप में तुम्हीं स्थित हो ॥2॥
इन मात्राओं के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेष रुप से उच्चारण नहीं
किया जा सकता, वह भी तुम्हीं हो। देवि! तुम्ही संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो ॥3॥
देवि! तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती
है। तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में
सबको अपना ग्रास बना लेती हो ॥4॥
जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालनकाल में
स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो ॥5॥
तुम्हीं महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा,
महादेवी और महासुरी हो ॥6॥
तुम्हीं तीनो गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो ॥7॥
तुम्हीं श्री, तुम्ही ईश्वरी, तुम्ही ह्री और तुम्ही बोधस्वरुपा बुद्धि हो।
लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो ॥8॥
तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररुपा तथा गदा, चक्र, शङ्ख और धनुष धारण करने वाली
हो। बाण, भुशुण्डी और परिघ – ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं ॥9॥
तुम सौम्य और सौम्यतर हो – इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ
हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो। पर और अपर-सबसे परे रहने वाली परमेश्वरी तुम्ही हो ॥10॥
सर्वस्वरुपे देवि! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उन सबकी जो शक्ति
है, वह तुम्हीं हो। ऎसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? ॥11॥
जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब
तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन
समर्थ हो सकता है? ॥12॥
मुझको, भगवान शंकर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर
धारण कराया है; अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है? ॥13॥
देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो। ये जो दोनों
दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन को मोह में डाल दो ॥14॥
जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन
दोनो महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो ॥15॥
॥ इस प्रकार तन्त्रोक्त रात्रिसूक्त सम्पूर्ण हुआ ॥
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