|| गंगा मंगल स्तोत्र ||
नमस्तुभ्यं वरे गङ्गे मोक्षसौमङ्गलावहे।
प्रसीद मे नमो मातर्वस मे सह सर्वदा।
गङ्गा भागीरथी माता गोमुखी सत्सुदर्शिनी।
भगीरथतपःपूर्णा गिरीशशीर्षवाहिनी।
गगनावतरा गङ्गा गम्भीरस्वरघोषिणी।
गतितालसुगाप्लावा गमनाद्भुतगालया।
गङ्गा हिमापगा दिव्या गमनारम्भगोमुखी।
गङ्गोत्तरी तपस्तीर्था गभीरदरिवाहिनी।
गङ्गाहरिशिलारूपा गहनान्तरघर्घरा।
गमनोत्तरकाशी च गतिनिम्नसुसङ्गमा।
गङ्गाभागीरथीयुक्तागम्भीरालकनन्दभा।
गङ्गा देवप्रयागा मा गभीरार्चितराघवा।
गतनिम्नहृषीकेशा गङ्गाहरिपदोदका।
गङ्गागतहरिद्वारा गगनागसमागता।
गतिप्रयागसुक्षेत्रा गङ्गार्कतनयायुता।
गतमानवपापा च गङ्गा काशीपुरागता।
गहनाघविनाशा च गत्युत्तमसुखावनी।
गतिकालीनिवासा च गङ्गासागरसङ्गता।
गङ्गा हिमसमावाहा गम्भीरनिधिसालय
गद्यपद्यनुतागीता गद्यपद्यप्रवाहिणी।
गानपुष्पार्चिता गङ्गा गाहितागह्वगह्वरा।
गायगाम्भीर्यमाधुर्या गायमाधुर्यवाग्वरा।
नमस्ते तुहिने गङ्गे नीहारमयनिर्झरि।
गङ्गासहस्रवाग्रूपे नमस्ते मानसालये।
मङ्गलं पुण्यगङ्गे ते सहस्रश्लोकसंस्फुरे।
सहस्रायुतसत्कीर्ते सत्त्वस्फूर्ते सुमङ्गलम्।
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