भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में उनके मित्रों का विशेष महत्व रहा है। बचपन से लेकर उनके किशोरावस्था तक, श्रीकृष्ण ने कई सखा और सखियों के साथ अद्भुत समय बिताया। गोकुल और वृंदावन में उनके बचपन के कुछ खास मित्र थे, जिनके साथ उन्होंने अपनी लीलाएं कीं। लगभग 11 वर्ष की उम्र तक वे इन मित्रों के साथ रहे। कंस वध के लिए मथुरा जाने के बाद भी उनके जीवन में मित्रों का स्थान महत्वपूर्ण बना रहा।
श्रीकृष्ण के बाल सखा
श्रीकृष्ण के बचपन के मित्रों में मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, श्रीदामा, सुदामा, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरंद, सदानंद, चन्द्रहास, बकुल, शारद और बुद्धिप्रकाश प्रमुख थे। इनमें से सुदामा के साथ उनकी मित्रता की कहानी विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
श्रीकृष्ण के अष्टसखा
पुष्टिमार्ग के अनुसार, उनके आठ प्रमुख सखा थे जिन्हें अष्टसखा कहा जाता है। ये हैं –
- तोक
- अर्जुन
- ऋषभ
- सुबल
- श्रीदामा
- विशाल
- भोज
- कृष्ण स्वयं।
श्रीकृष्ण की बाल सखियां
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण की सखियों के नाम भी दिए गए हैं। इनमें चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा और भद्रा का उल्लेख मिलता है। अन्य विवरणों में चित्रा, सुदेवी, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली) जैसे नाम भी मिलते हैं।
श्रीकृष्ण के अष्ट सखियां
श्रीराधा की आठ सखियों को अष्टसखी कहा जाता है। ये हैं –
- ललिता
- विशाखा
- चित्रा
- इंदुलेखा
- चंपकलता
- रंगदेवी
- तुंगविद्या
- सुदेवी
वृंदावन में इन अष्टसखियों के मंदिर भी स्थित हैं, जो उनके दिव्य संबंध और लीलाओं की महिमा का प्रतीक हैं। श्रीकृष्ण के सखा और सखियां, उनके जीवन का एक ऐसा पहलू हैं, जो हमें मित्रता, प्रेम और समर्पण की गहरी समझ देते हैं।
Found a Mistake or Error? Report it Now