मकर संक्रांति का दिन सूर्य देव को समर्पित है और इस दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग में बारह संक्रांतियाँ होती हैं, लेकिन धार्मिक दृष्टि से मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक है कि इसे सामान्यतः “संक्रांति” कहकर संबोधित किया जाता है।
मकर संक्रान्ति 2025 पुण्य काल मुहूर्त
- मकर संक्रान्ति – मंगलवार, जनवरी 14, 2025 को
- मकर संक्रान्ति पुण्य काल – 09:03 ए एम से 05:46 पी एम (अवधि – 08 घण्टे 42 मिनट्स)
- मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल – 09:03 ए एम से 10:48 ए एम (अवधि – 01 घण्टा 45 मिनट्स)
मकर संक्रांति का महत्व और शुरुआत
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति का महत्व इस बात में है कि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। हिंदू धर्म में सूर्य को सभी जीवों का पालनकर्ता देवता माना गया है, इसलिए इस दिन उनकी आराधना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उन दिनों को पवित्र माना जाता है।
लेकिन मकर संक्रांति (मकर संक्रांति व्रत कथा) के दिन को विशेष महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की शुरुआत को चिह्नित करता है।
उत्तरायण और मकर संक्रांति में अंतर
बहुत से लोग मकर संक्रांति को उत्तरायण का पर्याय मानते हैं, जबकि ये दोनों अलग-अलग खगोलीय घटनाएँ हैं। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो लगभग 285 ईस्वी में ये दोनों घटनाएँ एक साथ होती थीं। उत्तरायण का अर्थ है सूर्य का उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होना। हालांकि वर्तमान समय में यह शीत अयनांत के दिन होता है।
मकर संक्रांति का महत्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से है, जबकि उत्तरायण का महत्व सूर्य की दक्षिणी से उत्तरी गोलार्ध की यात्रा के पूरा होने से है।
मकर संक्रांति: फसल कटाई का पर्व?
यह धारणा कि मकर संक्रांति मुख्य रूप से फसल कटाई का त्योहार है, पूरी तरह सही नहीं है। दरअसल, संक्रांति का मौसम से कोई संबंध नहीं है। समय के साथ यह दिन शीत अयनांत से दूर होता जा रहा है। उदाहरण के लिए, 1600 ईस्वी में यह दिन 9 जनवरी को पड़ा था और 2600 ईस्वी में यह 23 जनवरी को पड़ेगा।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में यह फसल कटाई के समय आता है, जिससे उत्सव का उल्लास बढ़ जाता है।
संक्रांति पर अनुष्ठान और रीति-रिवाज
मकर संक्रांति पर विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं, जो क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार बदलते रहते हैं। सामान्य रीति-रिवाजों में शामिल हैं:
- पवित्र नदियों में स्नान
- सूर्य देव की पूजा
- दान करना
- तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ बनाना
- पतंगबाजी (विशेषकर गुजरात में)
- पालतू पशुओं की पूजा
क्षेत्रीय विविधताएँ
मकर संक्रांति पूरे भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाई जाती है:
- तमिलनाडु: इसे पोंगल कहते हैं और यह चार दिन तक मनाया जाता है।
- गुजरात: यहाँ इसे उत्तरायण के नाम से मनाते हैं।
- पंजाब: मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है।
- असम: यहाँ इसे माघ बिहु या भोगाली बिहु कहा जाता है।
- आंध्र प्रदेश: इसे पेद्दा पांडुगा के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का आधुनिक महत्व
आज यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकता और उत्सव का प्रतीक बन चुका है। विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य सूर्य देव का आभार प्रकट करना है।
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