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कब है 2024 फुलेरा दूज, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजाविधि और पौराणिक कथा

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पंचाग के अनुसार, प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज का उत्सव आयोजित किया जाता है। इस दिन मान्यता है कि श्रीकृष्ण, राधा, और उनकी गोपियाँ मिलकर फूलों की होली खेलते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन मास का पूरा महीना श्री राधा-कृष्ण की आराधना के लिए अत्यंत पुण्यकारी है, लेकिन फुलेरा दूज का उत्सव इसे और भी विशेष बनाता है।

इस अवसर पर फुलेरा दूज के दिन, विवाह और शुभ कार्यों के लिए अच्छे मुहूर्त को महत्वपूर्ण बनाया जाता है। ब्रजभूमि के कृष्ण मंदिरों में फुलेरा दूज का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, जहां भक्तगण भगवान की पूजा और भक्ति का आनंद लेते हैं।

फुलेरा दूज 2024

पंचांग के अनुसार इस वर्ष, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का आरंभ 11 मार्च को सुबह 10 बजकर 44 मिनट से हो रहा है। इसका समापन अगले दिन, 12 मार्च 2024 को सुबह 07 बजकर 13 मिनट पर होगा। उदय तिथि के साथ, फुलेरा दूज का उत्सव 12 मार्च को मनाया जाएगा।

राधा-कृष्ण की पूजा का मुहूर्त

12 मार्च को सुबह 09 बजकर 32 मिनट से दोपहर 02 बजे तक

गोधूलि मुहूर्त

शाम 06 बजकर 25 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट तक

फुलेरा दूज की पूजा विधि

  • इस दिन, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और श्री राधा-कृष्ण का गंगाजल, दही, जल, दूध और शहद से अभिषेक करें।
  • यदि मूर्ति उपलब्ध नहीं है, तो राधा-कृष्ण की तस्वीर को गंगाजल से छींटकर पूजा करें।
  • फिर, श्री राधा-कृष्ण को नए वस्त्र (लाल, गुलाबी, पीले केसरिया, हरे) पहनाकर श्रृंगार करें और उन्हें चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर विराजमान करें।
  • इसके बाद, उन पर सुंदर और ताज़े पुष्प चढ़ाकर नैवेद्य, धूप, फल, अक्षत, समेत विशेष चीजें अर्पित करें।
  • फिर, श्री राधा-कृष्ण को माखन-मिश्री, खीर, फल, और मिठाई का भोग लगाएं और भोग में तुलसी दल को अवश्य शामिल करें।
  • राधा रानी की कृपा पाने के लिए, उन्हें श्रृंगार की वस्तुएं जरूर अर्पित करें।
  • फुलेरा दूज पर, श्री राधा-कृष्ण (राधा कृष्ण सहस्रनामावली) की पूजा के लिए घी का दीपक जलाकर उनकी आरती और मंत्रों का जाप करें।

पौराणिक कथा

शास्त्रों में राधा रानी को प्रकृति और प्रेम की देवी माना गया है। एक कहानी है कि एक बार श्रीकृष्ण बहुत दिनों तक राधारानी से मिलने नहीं जा सके। राधा रानी के साथ ही गोपियां भी इस बात से काफी दुखी हो गईं और उनके मायूस होने का असर प्रकृति पर दिखने लगा। पेड़-पौधे, लताएं, पुष्प और वन सूखने लगे। प्रकृति का नजारा देखकर श्रीकृष्ण ने राधा की हालत का अंदाजा लगाया। इसके बाद वे बरसाना पहुंचकर राधारानी से मिले।

इससे राधारानी प्रसन्न हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। श्रीकृष्ण ने एक फूल तोड़ा और राधारानी पर फेंक दिया, जिससे उन्होंने भी कृष्ण पर फूल तोड़कर उत्तर दिया। इसके बाद गोपियों ने एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू किया, और फूलों की होली शुरू हो गई। यह दिन था फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि। इस दिन को फुलेरा दूज (फुलेरा दूज व्रत कथा) के नाम से जाना जाता है, और इस दिन राधा-कृष्ण के साथ फूलों की होली खेली जाती है।

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