महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एक ग्रंथ हैं। जिसमे वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टरूप से प्रतिपादित करने के लिये इस ग्रन्थ का का प्रणयन किया है। महर्षि ने सत्यार्थ-प्रकाश को जहाँ मूलतः हिन्दी में लिखा है। इस किताब में वेदों के अर्थों को समझने के लिए एक कुंजी के रूप में मानी जाती है। दयानंद सरस्वती ने वेदों के मानक सिद्धांतों को समझाने के लिए इस किताब को लिखा था।
वेदों के भाष्य करने से पहले, दयानंद सरस्वती ने यह ज़रूरी समझा था कि वेदों के मानक सिद्धांतों का ज्ञान होना चाहिए. इसलिए, उन्होंने वेदभाष्य करने वालों को इस किताब को साथ में लेने की सलाह दी थी। आधुनिक युग में यदि वेद के प्रति अपने जीवन को समर्पित किया है तो प्रथम नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती का ही आयेगा। वैदिक विचार धारा की शिक्षाओं का स्रोत वेद ही हैं। स्वामी जी ने जब वेदों का भाष्य करना चाहा तो उससे पहले, वेद के मानक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना अनिवार्य समझा।
महर्षि ने इस उद्देश्य को सामने रखते हुए ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ का प्रणयन किया. दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं ऋषि दयानन्द ने वेदों के अर्थ रूपी ताले को खोलने के लिए हमें कुंजी रूप में ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ प्रदान की। इसीलिए ऋषि ने अपने जीवन में वेदभाष्य लेने वाले के लिए ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ साथ में लेने को अनिवार्य बताया।