॥ श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पाठ की विधि ॥
- ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पाठ करने के लिए शुक्ल पक्ष की कोई शुभ तिथि का चयन करें।
- शुभ तिथि मंगलवार होनी चाहिए।
- ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पाठ करने के दिन में प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र को धारण कर लें।
- इसके बाद घर के पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमानजी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- प्रतिमा की विधि-विधान से पूजा कर ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ शुरू करें।
॥ श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र से लाभ ॥
- ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ जो भी मनुष्य करता है, उस पर मंगल भगवान खुश होकर उसे धन-धान्य प्रदान कराते हैं।
- वह मनुष्य कुबेर भगवान की तरह धन-संपत्ति का स्वामी बन जाता है।
- वो मनुष्य हमेशा युवा रहता है और उसे रोग और कर्ज से मुक्ति मिलता है।
॥ श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र एवं अर्थ ॥
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः॥
अर्थ: हे मंगल देव! शास्त्रों में आपके जो नाम बताए गए हैं, उनमें पहला नाम मंगल, दूसरा भूमिपुत्र, अर्थात पृथ्वी से उत्पन्न हुए, तीसरा ऋणहर्ता यानी कर्ज से मुक्ति दिलाने वाले, चौथा धनप्रद यानी धन देने वाले, पाँचवाँ स्थिरासन यानी जो अपने आसन पर स्थिर रहते हैं, छठा महाकाय यानी बड़े शरीर वाले, और सातवाँ नाम सर्वकामावरोधक यानी सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाले हैं।
लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में आठवां नाम लोहित, नवां लोहितांग, दसवां सामगानां यानी सामवेद ब्राह्मणों पर कृपा दृष्टि रखने वाले, ग्यारहवां धरात्मज यानी पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हुए, बारहवां कुज, तेरहवां भौम, चौदहवां भूतिद यानी ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, और पंद्रहवां नाम भूमि नंदन यानी पृथ्वी को आनंद देने वाले हैं।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
वृष्टे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके नामों में सोलहवां नाम अंगारक, सत्रहवां यम, अठारवां सर्व रोग पहारक यानी सभी रोगों को दूर करने वाले, उन्नीसवां वृष्टिकर्ता यानी वर्षा कराने वाले, बीसवां वृष्टिहर्ता यानी अकाल लाने वाले और इक्कीसवां सर्वकाम फलप्रदा यानी सभी कामनाओं का फल देने वाले हैं।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥
अर्थ: हे मंगल देव! जो व्यक्ति आपके इन इक्कीस नामों का सच्चे मन और विश्वास के साथ जाप करता है, उस पर कभी कर्ज का बोझ नहीं आता और उसे अपार धन की प्राप्ति होती है।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहरतं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपकी उत्पत्ति पृथ्वी के गर्भ से हुई है, आपकी आभा आकाश में चमकने वाली बिजली के समान है। सभी प्रकार की शक्ति के धारणकर्ता कुमार मंगल देव को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपके मंगल स्तोत्र का पाठ मनुष्य को सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ करना चाहिए, जिससे मन के सभी विकार दूर हों। जो भी व्यक्ति इस मंगल स्तोत्र का पाठ करता है और दूसरों को सुनाता है, उसके सभी दुख और कष्ट मिट जाते हैं।
अङ्गारक! महाभान! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥
अर्थ: हे अंगारक, अग्नि की ज्वाला से जलने वाले, महाभाग अर्थात पूजनीय, ऐश्वर्यशाली, भक्तों के प्रति वात्सल्य भाव रखने वाले! आपको हम नमन करते हैं। कृपा करके हमारे ऊपर से किसी भी प्रकार का ऋण समाप्त कर, हमें कर्ज से मुक्त कर दीजिए।
ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यवः।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
अर्थ: हे मंगल देव! यदि मेरे ऊपर किसी का भी कर्ज हो तो उसे समाप्त कर दें, किसी भी रोग या व्याधि को दूर कर दें। मेरी गरीबी को हटाकर अकाल मृत्यु के भय को समाप्त कर दें। किसी प्रकार का भय, क्लेश या मन का दुःख हो तो कृपया उसे भी सदा के लिए दूर कर दें।
अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥
अर्थ: हे मंगल देव! आपको प्रसन्न करना अत्यंत कठिन है, आप केवल दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से प्रसन्न होते हैं। लेकिन जब आप किसी पर कृपा करते हैं, तो उसे सुख-समृद्धि से परिपूर्ण कर देते हैं। और जब आप नाराज होते हैं, तो उसकी हर तरह की सम्पन्नता को नष्ट कर सकते हैं।
विरिञ्च-श्क्र-विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥
अर्थ: हे महाराज! जब आप किसी पर क्रोधित होते हैं, तो अपनी कृपा दृष्टि से उसे वंचित कर देते हैं। आपकी नाराजगी से ब्रह्मा, इन्द्र और विष्णु के साम्राज्य भी नष्ट हो सकते हैं, तो मुझ जैसे साधारण व्यक्ति की तो बात ही क्या है। आप सबसे शक्तिशाली और सबसे बड़े देव हैं।
पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गताः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥
अर्थ: हे भगवान! मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे संतान का वरदान दें। आपके द्वार पर आया हूँ, कृपा कर मेरी मनोकामना पूरी करें। मेरे ऊपर किसी का कर्ज न रहे, मुझे कभी किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े, मेरी गरीबी दूर हो और मेरे सभी कष्टों का नाश हो। मेरे शत्रुओं से भी मुझे मुक्त कराएं।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥
अर्थ: जो व्यक्ति इन बारह श्लोकों वाले ऋणमोचक मंगल स्तोत्र से आपकी स्तुति करता है, उस पर आप प्रसन्न होकर उसे धन-धान्य प्रदान करते हैं। वह व्यक्ति कुबेर की तरह धन-संपत्ति का स्वामी बनता है और सदा यौवन से परिपूर्ण रहता है।
॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
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