पौष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी, अपने नाम के अनुरूप ही फलदायी मानी जाती है। एकादशी व्रत, हिंदू धर्म में आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, जो कि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में 12-12 की संख्या में विभाजित होती हैं। अधिकमास या मलमास होने पर इनकी संख्या 26 तक भी पहुंच सकती है।
पद्म पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि बड़े-बड़े यज्ञों से भी उन्हें उतना संतोष नहीं होता जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। यही कारण है कि हर किसी को एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए और सफला एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए ।
सफला एकादशी 2024 जानें शुभ मुहूर्त
- सफला एकादशी बृहस्पतिवार, दिसम्बर 26, 2024 को
- एकादशी तिथि प्रारम्भ – दिसम्बर 26, 2024 को 12:59 ए एम बजे
- एकादशी तिथि समाप्त – दिसम्बर 27, 2024 को 03:13 ए एम बजे
- पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 09:39 ए एम से 09:40 ए एम
- पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 09:39 ए एम
सफला एकादशी व्रत पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पीले रंग का वस्त्र पहनना उत्तम होता है।
- हाथ में जल लेकर सफला एकादशी व्रत और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
- पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- केले के पौधे की पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम और विष्णु चालीसा का पाठ करें। सफला एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें।
- भगवान विष्णु को पीले फूल, चंदन, हल्दी, रोली, अक्षत्, फल, केला, पंचामृत, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, मिठाई, चने की दाल और गुड़ अर्पित करें।
- दिनभर फलाहार करते हुए व्रत रखें।
- दिनभर भगवत जागरण करें और रात्रि में हरि भजन करें।
- अगले दिन सुबह पूजा के बाद व्रत का पारण करें।
- एकादशी व्रत के दौरान लहसुन, प्याज, मसूर, चना, उड़द, नमक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- दिनभर में जितनी बार संभव हो, “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
- भगवान विष्णु की आरती करें और कार्य में सफलता के लिए प्रार्थना करें।
- दान-पुण्य का कार्य करें।
- गरीबों और असहायों की मदद करें।
सफला एकादशी व्रत कथा
चंपावती नगरी में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें लुम्पक नामक बड़ा राजकुमार महापापी था। वह परस्त्रीगमन, वेश्यागमन और अन्य कुकर्मों में लिप्त रहता था। राजा को जब उसके पुत्र के कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे राज्य से निकाल दिया।
लुम्पक वन में जाकर चोरी करने लगा। रात में वह नगरी में लौटकर चोरी करता और लोगों को परेशान करता। धीरे-धीरे पूरी नगरी भयभीत हो गई। लुम्पक वन में जानवरों को मारकर खाता था।
एक दिन पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्पक वस्त्रहीन होने के कारण ठंड से ठिठुर गया। अगले दिन एकादशी को सूर्य की गर्मी से उसे होश आया। भोजन की तलाश में निकला, परंतु जानवरों को मारने में असमर्थ था।
वह पेड़ों के नीचे गिरे फल उठाकर पीपल के वृक्ष के नीचे ले आया। भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे। लुम्पक ने फल भगवान को अर्पित कर कहा, “हे भगवान! यह भोजन आप ही ग्रहण करें।”
उस रात दुःख के कारण उसे नींद नहीं आई। उसके व्रत और जागरण से भगवान प्रसन्न हुए और उसके सभी पाप नष्ट हो गए।
अगले दिन एक सुंदर घोड़ा अनेक वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ। आकाशवाणी हुई कि “हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तुम्हारे पाप नष्ट हो गए। अब तुम अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त करो।”
लुम्पक अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण कर अपने पिता के पास गया। राजा ने उसे राज्य सौंप दिया। लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा।
उसका परिवार भगवान नारायण का भक्त हो गया। वृद्ध होने पर लुम्पक ने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वन में तपस्या की और अंत में वैकुंठ प्राप्त किया।
एकादशी माता आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
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