|| दोहा ||
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को,
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने,
दिया हरि भजन में सीर ॥
|| चौपाई ||
जय जय जग मात ब्रह्माणी ।
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥
वीणा पुस्तक कर में सोहे ।
शारदा सब जग सोहे ॥
हँस वाहिनी जय जग माता ।
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।
मात लोक की करो सहाई ॥
क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।
देवों ने जय बोली तब ही ॥
चतुर्दश रतनों में मानी ।
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥
चार वेद षट शास्त्र कि गाथा ।
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥
आदि शक्ति अवतार भवानी ।
भक्त जनों की मां कल्याणी ॥
जब−जब पाप बढे अति भारे ।
माता शस्त्र कर में धारे ॥
पाप विनाशिनी तू जगदम्बा ।
धर्म हेतु ना करी विलम्बा ॥
नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी ।
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥
तेरी लीला अजब निराली ।
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥
दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी ।
अमंगल में मंगल करणी ॥
अन्न पूरणा हो अन्न की दाता ।
सब जग पालन करती माता ॥
सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा ।
तो कृपा से टरता भव कूपा ॥
चंद्र बिंब आनन सुखकारी ।
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥
पवन पुत्र की करी सहाई ।
लंक जार अनल सित लाई ॥
कोप किया दश कन्ध पे भारी ।
कुटम्ब संहारा सेना भारी ॥
तु ही मात विधी हरि हर देवा ।
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥
देव दानव का हुआ सम्वादा ।
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
श्री नारायण अंग समाई ।
मोहनी रूप धरा तू माई ॥
देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।
देवों को मां सुधा पिलाई ॥
चतुराई कर के महा माई ।
असुरों को तू दिया मिटाई ॥
नौ खण्ङ मांही नेजा फरके ।
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥
तेरह सौ पेंसठ की साला ।
आस्विन मास पख उजियाला ॥
रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥
नगर कोट से किया पयाना ।
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥
चौसठ योगिनी बावन बीरा ।
संग में ले आई रणधीरा ॥
बैठ भवन में न्याय चुकाणी ।
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥
सांझ सवेरे बजे नगारा ।
उठता भक्तों का जयकारा ॥
मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी ।
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥
पास में बैठी मां वीणा वाली ।
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥
लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके ।
मन हर्षाता दर्शन करके ॥
चैत आसोज में भरता मेला ।
दूर दूर से आते चेला ॥
कोई संग में, कोई अकेला ।
जयकारो का देता हेला ॥
कंचन कलश शोभा दे भारी ।
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥
सीस झुका जन श्रद्धा देते ।
आशीष से झोली भर लेते ॥
तीन लोकों की करता भरता ।
नाम लिए सब कारज सरता ॥
मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।
भुल चूक सब माफी दीज्यो ॥
मन्द मति यह दास तुम्हारा ।
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥
जब लगि जिऊ दया फल पाऊं ।
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥
|| दोहा ||
राग द्वेष में लिप्त मन,
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी,
अपना अनुगत जान ॥
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