|| श्री गजानन आरती PDF ||
जय जय सतचित स्वरूपा स्वामी गणराया।
अवतरलासी भूवर जड मुढ ताराया॥
|| जयदेव जयदेव ||
निर्गुण ब्रह्म सनातन अव्यय अविनाशी।
स्थिरचर व्यापून उरलें जे या जगताशी॥
तें तूं तत्त्व खरोखर निःसंशय अससी।
लीलामात्रें धरिलें मानव देहासी ॥
|| जयदेव जयदेव ||
होऊं न देशी त्याची जाणिव तूं कवणा।
करूनी गणि गण गणांत बोते या भजना॥
धाता हरिहर (नरहरी) गुरुवर तूंचि सुखसदना।
जिकडें पहावे तिकडे तूं दिससी नयना॥
|| जयदेव जयदेव ||
लीला अनंत केल्या बंकट सदनास।
पेटविलें त्या अग्नीवाचूनी चिलमेस॥
क्षणांत आणिलें जीवन निर्जल वापीस।
केला ब्रह्मगिरीच्या गर्वाचा नाश॥
|| जयदेव जयदेव ||
व्याधी वारून केलें कैकां संपन्न।
करविले भक्तालागी विठ्ठल दर्शन॥
भवसिंधू हा तरण्या नौका तव चरण।
स्वामी दासगणूचे मान्य करा कवन॥
|| जयदेव जयदेव ||
जय जय सतचित-स्वरूपा स्वामी गणराया।
अवतरलासी भूवर जड मुढ ताराया॥
|| जयदेव जयदेव ||
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