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Shri Jaharveer

श्री गोगा नवमी व्रत कथा

Shri Goga Navmi Vrat Katha Hindi

Shri JaharveerVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| गोगा नवमी की पूजन विधि ||

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी को सुबह जल्दी उठ कर नहा धोकर खाना, खीर, चूरमा, गुलगुले आदि बनाकर जब मिट्टी की मूर्तियां लेकर महिलाएं आती हैं तो इनकी पूजा होती है। रोली, चावल से टीका कर बनी हुई रसोई का भोग लगाएं, गोगाजी के घोड़े के आगे दाल रखी जाती है और रक्षा बंधन की राखी खोल कर इन्हें चढ़ाई जाती है। कहा जाता है कि रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाइयों को जो रक्षासूत्र बांधती हैं वह गोगा नवमी के दिन खोल कर गोगा जी महाराज को चढ़ा दिए जाते हैं। कई जगह तो गोगा जी की घोड़े पर चढ़ी हुई वीर मूर्ति होती है। हर जगह इनकी पूजा के तरीके में अंतर तो जरूर है।

कहीं-कहीं तो सांप की बांबी की पूजा भी की जाती है।ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगा जी महाराज की पूजा करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

|| गोगा नवमी कथा ||

यह पर्व भाद्रपाद कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगा जी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक अन्य नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरख नाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।

|| गोगा नवमी के दिन होती है नागों की पूजा ||

गोगा देवता की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है। गोगा जी की पूजा श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन से शुरू होती है। नौ दिनों तक यानी नवमी तक चलती है। इसलिए इसे गोगा नवमी भी कहा जाता है। गोगा नवमी के दिन नागों की पूजा करते हैं क्योंकि इन्हें सांपों का देवता माना गया है। गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं।

|| गोगा नवमी की मान्यता ||

श्रीगोगा नवमी की ऐसी मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर पर रखने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ गोगामंडी के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। कहा जाता है कि श्री जाहरवीर गोगादेवजी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। नवमी तिथि का दिन जाहरवीर की जोत कथा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घरो में जाहिर वीर की पूजा और हवन किया जाता है। साथ ही खीर और पुआ का भोग लगाया जाता है। लोग अपनी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी पूजा करते है।

 

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