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वृत्तप्रभाकर (Vrittprabhakar)

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‘वृत्तप्रभाकर’ एक अद्वितीय दार्शनिक ग्रंथ है, जिसकी रचना निश्छलदास जी ने की है। यह ग्रंथ भारतीय अद्वैत वेदांत परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है और आत्मज्ञान, आध्यात्मिक जागृति तथा मोक्ष के मार्ग को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। निश्छलदास जी ने इस ग्रंथ को हिंदी भाषा में रचा, जो उस समय का एक अनूठा और साहसिक कदम था, क्योंकि अधिकांश दार्शनिक ग्रंथ संस्कृत में लिखे जाते थे।

निश्छलदास 19वीं सदी के प्रसिद्ध दार्शनिक और अद्वैत वेदांत के अनुयायी थे। वे स्वामी विद्यानंद के शिष्य थे और उन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन में वेदांत की गूढ़ शिक्षा प्राप्त की। उनका उद्देश्य जटिल वेदांत सिद्धांतों को हिंदी भाषा के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाना था।

वृत्तप्रभाकर अद्वैत वेदांत की गहराई को स्पष्ट रूप से समझाने वाला ग्रंथ है। इसमें आत्मा, माया, ब्रह्म, जीव, और उनके परस्पर संबंधों का गहन विश्लेषण किया गया है। यह ग्रंथ केवल तात्त्विक विवेचन तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी आत्मज्ञान प्राप्त करने के साधनों पर बल देता है।

वृत्तप्रभाकर पुस्तक की मुख्य विशेषताएं

  • पुस्तक में अद्वैत वेदांत के गूढ़ सिद्धांतों को स्पष्ट और व्यावहारिक भाषा में समझाया गया है। यह आत्मा और ब्रह्म के एकत्व की गहराई को उजागर करता है।
  • वृत्तप्रभाकर यह बताता है कि आत्मज्ञान और मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसमें साधना, ध्यान, और वैराग्य के महत्व पर जोर दिया गया है।
  • पुस्तक में माया को स्पष्ट किया गया है और यह समझाया गया है कि माया से मुक्त होकर आत्मा का अनुभव कैसे किया जा सकता है।
  • निश्छलदास जी ने संस्कृत की जटिलता से मुक्त होकर हिंदी में इस ग्रंथ की रचना की, जिससे वेदांत का ज्ञान अधिक लोगों तक पहुंचा।
  • वृत्तप्रभाकर न केवल एक दार्शनिक ग्रंथ है, बल्कि यह साधकों के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शन भी है।

वृत्तप्रभाकर पुस्तक क्यों पढ़ें?

  • यदि आप अद्वैत वेदांत की गहराई को सरल भाषा में समझना चाहते हैं।
  • यदि आप आत्मज्ञान और मोक्ष की प्रक्रिया को जानना चाहते हैं।
  • यदि आप भारतीय दार्शनिक परंपरा में रुचि रखते हैं और उसे अपने जीवन में लागू करना चाहते हैं।

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