बीजात्मक दुर्गा सप्तशती में दैत्याना देहनाशाय भक्तनामभयाय च। धारयन्त्यायुधानीत्य॑ देवानां च हिताय वै। नमस्तेस्तु महारीद्रे महाघोरपराक्रमे। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी। त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष् शत्रूणां भयवर्धिनि।प्राच्या रक्षतु मामैंद्री आग्रेय्यामग्रिदेवता। दक्षिणवतु वाराही नैरऋत्यां खड्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद वायव्यां मृगवाहिनी। उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती के पाठ में षडंग (कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य तथा मूर्ति रहस्य) पाठ की आवश्यकता नहीं है। सबसे पहले दुर्गाजी का पूजन कर शापोद्धार आदि की क्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए। अब तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् का पाठ कर आदि एवं अन्त में नर्वाण मंत्र का 108 बार जप करें व अंत में देवीसूक्तम् का पाठ करें।
बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती
शापोद्धार मंत्र– शापोद्धार के लिए नीचे वर्णित मंत्र का ७ बार आदि व अन्त में जप करना चाहिये।
‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’
उत्कीलन मंत्र– शापोद्धार के बाद उत्कीलन-मंत्र का २१ बार आदि व अन्त में जप करना चाहिये।
ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा‘
मृतसंजीवनी मंत्र – उत्कीलन के उपरान्त मृतसंजीवनी मंत्र का ७ बार आदि व अन्त में पाठ करना चाहिये।
‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा’
शापोद्धारादि के पश्चात् तंत्र दुर्गासप्तशती के निम्नांकित तंत्रोक्त रात्रिसूक्त का पाठ करना चाहिये।