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Shri Ganesh

श्री गणाधिपत स्तोत्रम् अर्थ सहित

Gadadhipat Stotram Arth Sahit Hindi

Shri GaneshStotram (स्तोत्र संग्रह)हिन्दी
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॥ श्री गणाधिप स्तोत्र पाठ विधि ॥

  • भगवान गणपति की आराधना को शुरू करने के लिए चतुर्थी का दिन सबसे शुभ माना गया है।
  • इस दिन साधक को सुबह उठकर स्नान आदि के बाद गणपति का विधि विधान से पूजन करना चाहिए।
  • अगर संभव हो तो किसी गणपति मंदिर या घर में भगवान गणेश की मूर्ति के सामने बैठकर इस स्तोत्र का पाठ करें।

॥ श्रीगणाधिपस्तोत्रम् पाठ से लाभ ॥

  • यह ‘श्रीगणाधिपस्तोत्रम्’ साधक को अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है।
  • जो लोग प्रणामपूर्वक प्रसन्नता के लिए इसका पाठ करते हैं, वे विद्वानों के समक्ष अपने वैभव के लिए प्रशंसित होते हैं।
  • जो लोग इसका पाठ करते हैं वे दीर्घायु, श्री-संपत्ति सम्पन्न तथा सुन्दर पुत्र वाले होते हैं।

॥ श्री गणाधिप स्तोत्र एवं अर्थ ॥

सरागिलोकदुर्लभं विरागिलोकपूजितं,
सुरासुरैर्नमस्कृतं जरादिमृत्युनाशकम्॥
गिरा गुरु श्रिया हरिं जयन्ति यत्पदार्थका,
नमामि तं गणाधिपं कृपापयः पयोनिधिम्॥

अर्थ: जो विषयासक्त लोगों के लिए दुर्लभ, विरक्त जनों से पूजित, देवताओं और असुरों से वन्दित तथा जरा आदि मृत्यु के नाशक हैं, जिनके चरणारविन्दों की अर्चना करने वाले भक्त अपनी वाणी द्वारा बृहस्पति को और लक्ष्मी द्वारा श्री विष्णु को भी जीत लेते हैं, उन दयासागर गणाधिपति को मैं प्रणाम करता हूं।

गिरीन्द्रजामुखाम्बुजप्रमोददानभास्करं,
करीन्द्रवक्त्रमानताघसंघवारणोद्यतम्।
सरीसृपेशबद्धकुक्षिमाश्रयामि संततं,
शरीरकान्तिनिर्जिताब्जबन्धुबालसंततिम्॥

अर्थ: जो गिरिराज नंदिनी उमा के मुखारविन्द को प्रमोद प्रदान करने के लिए सूर्य रूप हैं, जिनका मुख गजराज के समान है। जो प्रणतजनों की पापराशि का नाश करने के लिए उद्यत रहते हैं, जिनकी उदर नागराज शेष से आवेष्टित है तथा जो अपने शरीर की कांति से बाल सूर्य की किरणावली को पराजित कर देते हैं, उन गणेशजी की मैं सदा शरण लेता हूं।

शुकादिमौनिवन्दितं गकारवाच्यमक्षरं,
प्रकाममिष्टदायिनं सकामनम्रपङ्क्तये।
चकासनं चतुर्भुजैर्विकासिपद्मपूजितं,
प्रकाशितात्मतत्त्वकं नमाम्यहं गणाधिपम्॥

अर्थ: शुक आदि मौनावलम्बी महात्मा जिनकी वंदना करते हैं, जो गाकर के वाच्यार्थ, अविनाशी तथा सकामभाव लेकर चरणों में प्रणत होने वाले भक्त-समूहों के लिए मनचाही अभीष्ट को देने वाले हैं, चार भुजाएं जिनकी शोभा बढ़ाती हैं, जो प्रफुल्ल कमल से पूजित होते हैं और आत्मतत्त्व के प्रकाशक हैं, उन गणाधिपति को मैं नमस्कार करता हूं।

नराधिपत्वदायकं स्वरादिलोकदायकं,
जरादिरोगवारकं निराकृतासुरव्रजम्।
कराम्बुजैर्धरन्सृणीन् विकारशून्यमानसैर्हृदा,
सदा विभावितं मुदा नमामि विघ्नपम्॥

अर्थ: जो नरेशत्व प्रदान करने वाले स्वर्गादि लोकों के दाता, जरा आदि रोगों का निवारण करने वाले तथा असुरसमुदाय का संहार करने वाले हैं, जो अपने करारविन्दों द्वारा अङ्कुश धारण करते हैं और निर्विकार चित्तवाले उपासक जिनका सदा ही मन के द्वारा ध्यान रखते हैं, उन विघ्नपति को मैं सानन्द प्रणाम करता हूं।

श्रमापनोदनक्षमं समाहितान्तरात्मना,
समाधिभिः सदार्चितं क्षमानिधिं गणाधिपम्।
रमाधवादिपूजितं यमान्तकात्मसम्भवं,
शमादिषड्गुणप्रदं नमामि तं विभूतये॥

अर्थ: जो सब प्रकार के श्रम या पीड़ा का निवारण करने में समर्थ हैं। एकाग्रचित्त वाले योगी के द्वारा सदा समाधि से पूजित हैं, जो क्षमा के सागर और गणों के अधिपति हैं, लक्ष्मीपति विष्णु आदि देवता जिनकी पूजा करते हैं, जो मृत्युंजय के आत्मज हैं तथा शम आदि छह गुणों के दाता हैं, उन गणेश को मैं ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूं।

गणाधिपस्य पञ्चकं नृणामभीष्टदायकं,
प्रणामपूर्वकं जनाः पठन्ति ये मुदायुताः।
भवन्ति ते विदाम्पुरः प्रगीतवैभवाः,
जनाश्चिरायुषोऽधिकश्रियः सुसूनवो न संशयः॥

अर्थ: यह ‘गणाधिपपञ्चकस्तोत्र’ मनुष्यों को अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। जो लोग प्रणामपूर्वक प्रसन्नता के लिए इसका पाठ करते हैं, वे विद्वानों के समक्ष अपने वैभव के लिए प्रशंसित होते हैं तथा दीर्घायु, श्री-सम्पत्ति सम्पन्न तथा सुन्दर पुत्र वाले होते हैं, इसमें संशय नहीं है।

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं गणाधिपस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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