।। दोहा ।।
दुर्गे! दुर्गतिनाशिनी,
वासिनी गिरिकैलास!
मंदहास ! मृदुभाषिणी!,
माॅं! काटौ यमपाश!
।। चौपाई ।।
जयति! अंबिका! जयति! भवानी!
शिवा ! सांभवी! भवा! मृडानी!!
विन्ध्यनिवासिनि! हिमगिरि-गेहा!
वपु विराट अति सूक्ष्म सुदेहा!
तुंग शृंग अयि!गब्बरवासी!
शिव-पत्नी! मख दक्ष विनाशी!!
सती! जया! कोहला-नग-वासी! !
सकलशब्दमयि!आनंदराशी!!
हिंगलाज!भगवति! जयदाई !
असुरनिकंदनि! अभयप्रदाई!
जपाकुसुम-कर! जय कौमारी!
पूजित सुर हरि अज, त्रिपुरारी!
विघ्ननिवारिणि! भव भय हारिणि!
दैत्य विदारिणि! रिपुदलमारिणि!
विश्वविमोहिनि! दुर्गतिहारी!
कालविभंजनि! शरणतिहारी!
कात्यायनि! कुशमांडा गौरी!
शशिघंटा गिरिराजकिशोरी!
कालरात्रि! ब्रह्मचारिणि बाला!
सिद्धिदात्रि! धात्रि जगपाला!
स्कंदजननि! गणनायक माता !
भव भय भंजनि! सुर मुनि त्राता!
बीसभुजी! वाणी! ब्रह्माणी!
कवि कल्याणी! पुस्तकपाणी!
स्वर सुर शब्द भाव शुचि दाता!
शारद शुभ्र वसन अवदाता!
खप्पर धारिणि! आभ कपाली!
सुर संतन भक्तन प्रतिपाली!
मुंडमालिनी! डाक-डमाली!
भद्रकालिका ! तारा!काली!
कमलाक्षी!दारिद्र्यप्रजारी !
यश-वैभव-धनदा! अघहारी!
विमले! रक्तकमल- वर-पाणी!
पद्मनाभ- प्रिय! जनकल्याणी!
शून्य शिखर में अंब! विराजै!
गड़ड़ गड़ड़ घन नौबत गाजै!
तडित विनन्दित रूप मनोहर!
ज्योति पुंज!जग-तम-हर सुंदर!!
सकल चराचर देखनहारै!
सूर्य चंद्र दो नैन तिहारै!!
आदि शक्ति जयदायिनि ज्वाला!
कुमकुम सिंदुर रेख कपाला!
शिशु-शशि-स्वर्ण मुकुट पर सोहे!
स्मित मुख मंद मंद मन मोहे!
कुंडल मकराकृतशुभ कर्णा!
रत्न जटित गलहार सुवर्णा!
खडग शूल शर चाप कटारी!
जगद्धोधरण धरे महतारी!
नेत्र, लाल विकराल! कराली!
चामुंडा! चंडी! करवाली!
भैरवि! असुर भयावनि! माया!
तप्तस्वर्णआभा सुरराया!
युगल चरण अरविंद तुम्हारै!
सेवत सुर मुनि भये सुखारै!
जगदंबे! त्रिकुटाचलवासी!
परमेश्वरी!विराजिनि काशी!
अनपुरणा! अन धन यश दाता!
ऋषि मुनि भजै तुम्है दिन राता !
वरमुद्राधारी! रूद्राणी!
सुधा सहोदरी-कमला-रानी!
संकट विकट समय जब ध्याई!
सपदि सिंह चढ रही सहाई!
चंड मुंड महिषासुरमारै!
रक्त बीज शक्ति संहारै!
धूम्रविलोचन भृकृटि विलासा!
दुर्गा-पाप पुंज-तम-नाशा!
भक्त-कल्पलतिके! वरदाई!
नवदुर्गे! दशविद्ये! माई!
अष्ठ सिद्धि! नवनिद्धि प्रदाई!
अस कहि कविजन कीरत गाई!
महिमा अमित! चरित सुखकारी!
गावत जन जावत बलिहारी!
सकल जगत तुम्हरौ जस छायौ!
मार्कंडेय मुनि किंचित गायौ!
ऋषि कोविद कवि पंडित ज्ञानी!
नेति नेति कहि! तोही!बखानी!!
मोह निशा ने मम मन घेरो!
सत्वर करियै मात सवैरौ!
कवि नरपत पर किरपा कीजै!
निज चरणन चाकर रख लीजै!
।। दोहा ।।
गणपति षणमुख शिव सहित,
करन सुमंगल मूल!
रहौ विराजित ह्रदय में,
शिवा!चढी शार्दूल!!
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